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पंडित राम नंदन मिश्रा (27 मार्च, 1904 - 24 जुलाई, 1974)

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  पंडित राम नंदन मिश्रा (27मार्च,1904 -24जुलाई, 1974)  भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक ऐसे अनमोल रत्न थे जिन्होंने न केवल ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ अथक संघर्ष किया, बल्कि स्वतंत्र भारत में एक समतावादी समाज के निर्माण और ग्रामीण उत्थान के लिए भी अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनका जीवन त्याग, संघर्ष और जनसेवा का एक अनुपम उदाहरण है। प्रारंभिक जीवन, शिक्षा और वैचारिक जड़ें पंडित राम नंदन मिश्रा का जन्म 27 मार्च, 1904 को बिहार के मधुबनी ज़िले के सरिसब-पाही गांव में एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय पाठशाला में हुई, जहाँ उन्होंने संस्कृत और पारंपरिक ज्ञान अर्जित किया। उच्च शिक्षा के लिए वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) गए, जो उस समय राष्ट्रीय चेतना और बौद्धिक गतिविधियों का एक प्रमुख केंद्र था। BHU में अध्ययन के दौरान वे महात्मा गांधी के अहिंसक आंदोलन और राष्ट्रवाद के विचारों से गहराई से प्रभावित हुए। उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़कर असहयोग आंदोलन (1920-22) में सक्रिय रूप से भाग लिया, जो उनके जीवन की दिशा को परिभाषित करने वाला क्षण था। यही...

याज्ञवल्क्य: वैदिक भारत के महान ऋषि, दार्शनिक और न्यायशास्त्रज्ञ

याज्ञवल्क्य: वैदिक भारत के महान ऋषि, दार्शनिक और न्यायशास्त्रज्ञ प्रस्तावना भारतीय ऋषिपरंपरा में याज्ञवल्क्य का स्थान अत्यंत उच्च है। वे वैदिक युग के महानतम मनीषियों में से एक माने जाते हैं जिन्होंने ज्ञान, दर्शन और धर्मशास्त्र के क्षेत्रों में अनुपम योगदान दिया। वे न केवल शुक्ल यजुर्वेद के मुख्य प्रवर्तक थे, बल्कि बृहदारण्यकोपनिषद् के महान उपदेशक, गार्गी और मैत्रेयी जैसे विदुषियों के संवाददाता तथा धर्मसूत्र और स्मृतिकार के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। उनका चिंतन आज भी भारतीय दर्शन और विधि-व्यवस्था का आधार स्तंभ है, जो हमें आत्मा के गूढ़ रहस्यों से लेकर सामाजिक न्याय तक के सिद्धांतों से परिचित कराता है। जीवन परिचय: मिथिला के ज्ञान पुंज जन्मकाल: याज्ञवल्क्य का जन्मकाल अनुमानतः  ईसा पूर्व 7वीं-8वीं शताब्दी के आस-पास माना जाता है, जो उन्हें उपनिषदीय काल के प्रमुख विचारकों में स्थापित करता है। स्थान :  उनका जन्म और जीवन का प्रमुख भाग मिथिला (वर्तमान बिहार राज्य में) में व्यतीत हुआ, जो उस समय ज्ञान और दर्शन का एक प्रमुख केंद्र था। गुरु :  उन्होंने ऋषि वाजसनेयी से शिक्षा ग्रहण की। ...

गौतम डोरे और मालू डोरे: वीर बलिदानी जो Alluri Sitarama Raju के स्वप्न को जीवित रखे

गौतम डोरे और मालू डोरे: वीर बलिदानी जो Alluri Sitarama Raju के स्वप्न को जीवित रखे भूमिका: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास उन अनगिनत वीरों की शौर्यगाथाओं से भरा पड़ा है, जिन्होंने बिना किसी स्वार्थ के मातृभूमि की मुक्ति के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। आंध्र प्रदेश के वनांचल क्षेत्र में जन्मे Elluri Sitarama Raju के नेतृत्व में जो “ फितूरी विद्रोह ” (Rampa Rebellion, 1922-23) हुआ, उसमें उनके दो प्रमुख सहयोगी रहे – Gautam Dore और Mallu Dore । ये दोनों भाई थे और उन्हीं की तरह वनवासी समुदाय से आते थे। उन्होंने अपने प्रिय नेता के बलिदान के बाद भी विद्रोह की मशाल को जलाए रखा। Elluri Sitarama Raju और फितूरी विद्रोह की पृष्ठभूमि: Elluri Sitarama Raju (1897-1924), जिन्हें सम्मानपूर्वक ‘ Manyam Veerudu ’ यानी 'जंगलों का वीर' कहा जाता है, ने अंग्रेज़ों के शोषण और अनुचित नीतियों के खिलाफ ईस्ट गोदावरी और विजाग (आंध्र प्रदेश) में जनजातीय समुदायों का नेतृत्व किया। 1922-23 में उन्होंने Chintapalli , Krishnadevipeta और Rajavommangi जैसे क्षेत्रों में पुलिस थानों पर धावा बोला, गोला...

सुनील दत्त: सिनेमा और सेवा के समर्पित सितारे(जन्म: 6 जून 1929 – निधन: 25 मई 2005)

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सुनील दत्त: सिनेमा और सेवा के समर्पित सितारे (जन्म: 6 जून 1929 – निधन: 25 मई 2005) प्रस्तावना सुनील दत्त भारतीय सिनेमा के उन विशिष्ट और बहुआयामी कलाकारों में से एक हैं, जिन्होंने न केवल फिल्मी दुनिया में अपनी सशक्त अभिनय क्षमता से पहचान बनाई, बल्कि सामाजिक कार्यों और राजनीति के क्षेत्र में भी अप्रतिम योगदान दिया। उनका जीवन एक आदर्श पुरुष की जीवंत मिसाल है, जिसने संघर्ष, सेवा, संवेदना और सफलता की मिसालें कायम कीं। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा सुनील दत्त का जन्म 6 जून 1929 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के जेलम जिले (अब पाकिस्तान में) के खुर्द गांव में हुआ था। उनका असली नाम बलराज दत्त था। 1947 में भारत के विभाजन के समय उनका परिवार मुंबई आ गया। उन्होंने जय हिन्द कॉलेज, मुंबई से स्नातक की शिक्षा ग्रहण की और इसके बाद रेडियो Ceylon में उद्घोषक के रूप में काम करना शुरू किया। यहीं से उनकी आवाज़ और व्यक्तित्व की दुनिया ने पहचान बनाई। फिल्मी करियर की शुरुआत 1955 में आई फिल्म ‘रेलवे प्लेटफॉर्म’ से उन्होंने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने ‘एक ही रास्ता’ (1...

माधव सदाशिवराव गोलवलकर (19 फरवरी 1906 – 5 जून 1973)

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माधव सदाशिवराव गोलवलकर (19 फरवरी 1906 – 5 जून 1973) माधव सदाशिवराव गोलवलकर, जिन्हें प्रायः "गुरुजी" के नाम से जाना जाता है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के द्वितीय सरसंघचालक थे। वे आरएसएस के सबसे प्रभावशाली नेताओं में गिने जाते हैं और हिन्दुत्व विचारधारा को स्पष्ट रूप देने तथा संगठन को विस्तार देने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा गोलवलकर का जन्म 19 फरवरी 1906 को ब्रिटिश भारत के सेंट्रल प्रोविन्सेज़ एंड बेरार के रामटेक नामक स्थान पर एक मराठी करहाडे ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता सदाशिवराव एक शिक्षक थे और बाद में एक हाई स्कूल के प्रधानाचार्य बने। नौ संतानों में वे एकमात्र जीवित रहने वाले पुत्र थे। बचपन से ही गोलवलकर को धर्म और आध्यात्म में गहरी रुचि थी। उन्होंने नागपुर के हिस्लॉप कॉलेज में पढ़ाई की, लेकिन बाद में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) चले गए। वहाँ से उन्होंने 1927 में विज्ञान स्नातक (B.Sc.) और 1929 में जीवविज्ञान में स्नातकोत्तर (M.Sc.) की उपाधि प्राप्त की। इसके साथ-साथ उन्होंने कानून की भी पढ़ाई की और BHU में प्राणीशास...

क्रांतिकारी नारायण दामोदर सावरकर(4 जून 1879- 27 अप्रैल 1949)

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क्रांतिकारी नारायण दामोदर सावरकर(4 जून 1879- 27 अप्रैल 1949) परिचय भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अनगिनत वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी, जिनमें कुछ नाम इतिहास में प्रसिद्ध हुए और कुछ अपने अमूल्य योगदान के बावजूद अपेक्षाकृत कम प्रसिद्ध रहे। ऐसे ही एक महान क्रांतिकारी थे नारायण दामोदर सावरकर । वे भारतमाता के उन सच्चे सपूतों में से थे जिन्होंने आज़ादी की राह में अपने प्राण, परिवार और सुख-चैन सब कुछ न्यौछावर कर दिया। वे प्रसिद्ध क्रांतिकारी वीर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) के बड़े भाई और बाबाराव सावरकर के छोटे भाई थे। तीनों भाइयों ने स्वतंत्रता संग्राम में अद्वितीय त्याग और साहस का प्रदर्शन किया। जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि इनका जन्म भगूर नामक गांव जो   जिला नासिक और राज्य महाराष्ट्र में पड़ता है। इनके पिता का नाम श्री दामोदर पंत सावरकर तथा माता का नाम राधाबाई सावरकर था। इनके दो और भाई थे। विनायक दामोदर सावरकर (वीर सावरकर), गणेश दामोदर सावरकर (बाबाराव) दोनों ही महान क्रांतिकारी थे। भगूर गाँव उस युग में राष्ट्रवादी भावना से ओतप्रोत था। सावरकर परिवार में संस्कार,...

George Fernandes: A Revolutionary Socialist Leader (June 3, 1930 – January 29, 2019)

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George Fernandes: A Revolutionary Socialist Leader (June 3, 1930 – January 29, 2019) Introduction George Fernandes was one of the stalwart leaders of Indian politics who dedicated his entire life to socialism, labor rights, and nationalism. He was not only a fiery orator but also a relentless fighter who stood up against the ruling establishment. Known as a rebellious leader, Fernandes vehemently opposed the authoritarianism of the government during the Emergency and became a symbol of resistance. Early Life and Education George Fernandes was born on June 3, 1930, in Mangalore, Karnataka, into a Christian family. From an early age, he leaned towards socialist ideology. His childhood was full of hardships, and later, he moved to Mumbai in search of employment. Involvement in Trade Union Movements In Mumbai, Fernandes became active in trade union movements and began fighting for the rights of workers. He championed the causes of taxi drivers, railway employees, and indu...

Raj Kapoor: The Eternal Showman of Indian Cinema (14 December 1924 – 2 June 1988)

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Raj Kapoor: The Eternal Showman of Indian Cinema (14 December 1924 – 2 June 1988) Early Life and Family Background Raj Kapoor was born on December 14, 1924, in Peshawar (now in Pakistan), into the culturally rich and affluent Kapoor family. His father, Prithviraj Kapoor , was a pioneer of Indian theatre and cinema. In this artistic lineage, Raj Kapoor emerged as a natural heir to this creative legacy. He received his early education at Queen Mary School, Bombay. Though he lacked formal training in the arts, he gained invaluable hands-on experience in acting, set design, and direction through his time at Prithvi Theatres . First Steps Towards Cinema Neel Kamal (1947) First leading role opposite Madhubala Displayed remarkable spontaneity and emotional depth in acting  Founding of R.K. Films (1948) Took the bold step of becoming an independent producer-director Debut directorial film: Aag , portraying youthful dreams and shattered hopes Established R.K. Studio , wh...

मंडन मिश्र (भारतीय दार्शनिक परंपरा में अद्वैत वेदान्त के मूर्धन्य विद्वान)

मंडन मिश्र  (भारतीय दार्शनिक परंपरा में अद्वैत वेदान्त के मूर्धन्य विद्वान) परिचय भारतीय दार्शनिक परंपरा में मंडन मिश्र का स्थान अत्यंत विशिष्ट और सम्माननीय है। वे न केवल पूर्व मीमांसा परंपरा के गहन ज्ञाता थे, बल्कि उन्होंने अद्वैत वेदान्त के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 8वीं–9वीं शताब्दी के इस महान विद्वान का योगदान भारतीय ज्ञान परंपरा के लिए सेतु के समान है, जो कर्मकांड आधारित मीमांसा दर्शन से ज्ञानप्रधान अद्वैत वेदान्त की ओर बौद्धिक संक्रमण को दर्शाता है। उनकी रचना ब्रह्मसिद्धि आज भी अद्वैत वेदान्त की आधारशिला मानी जाती है। जीवन परिचय मंडन मिश्र का जन्म एक विद्वान ब्राह्मण कुल में हुआ था। मिथिला क्षेत्र—जो उस समय भारतीय बौद्धिक और सांस्कृतिक चेतना का केंद्र था—को उनका जन्मस्थल माना जाता है। कुछ विद्वान इन्हें कौशाम्बी से भी जोड़ते हैं। वे अपने समय के सर्वाधिक योग्य और तर्कशील आचार्यों में गिने जाते थे। उनकी पत्नी भारती देवी स्वयं विदुषी थीं और उन्हें शास्त्रार्थ में निर्णायक की भूमिका निभाते हुए प्रसिद्धि प्राप्त हुई। शंकराचार्य से उनके शास्त्रार्थ की कथा आज भी ...

विदुषी मैत्रेयी: वैदिक युग की ब्रह्मवादिनी और आत्मज्ञान की साधिका

विदुषी मैत्रेयी: वैदिक युग की ब्रह्मवादिनी और आत्मज्ञान की साधिका मैत्रेयी का ऐतिहासिक और पारिवारिक परिप्रेक्ष्य मैत्रेयी का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में माना जाता है। कई वैदिक ग्रंथों में उन्हें "ब्रह्मवादिनी" कहा गया है — अर्थात ऐसी स्त्री जो ब्रह्म (परम सत्य) की प्राप्ति के लिए अध्ययन, साधना और विचार करती है। उनका विवाह याज्ञवल्क्य से हुआ, जो स्वयं महान ऋषि, शुक्ल यजुर्वेद के प्रमुख प्रवर्तक और उपनिषद् दर्शन के स्तंभ माने जाते हैं। याज्ञवल्क्य की दूसरी पत्नी कात्यायनी एक पारंपरिक गृहिणी थीं, जबकि मैत्रेयी को आत्मबोध की लालसा थी। विशेष तथ्य: संभवत: मैत्रेयी याज्ञवल्क्य की शिष्या भी थीं, और फिर धर्मपत्नी बनीं। यह दर्शाता है कि उस युग में ज्ञान के आधार पर वैवाहिक संबंध भी स्वीकार्य थे। बृहदारण्यक उपनिषद् में मैत्रेयी संवाद: मूल श्लोक और व्याख्या मूल संवाद (बृहदारण्यक उपनिषद् – अध्याय 2.4.1-14) "मैत्रेयी, एतदर्धं वासुदेवेनोक्तं यत् स्यादमृतत्वस्य, न वै धनैः अमृतत्वं अशक्यमाप्तुम्।" — याज्ञवल्क्य अनुवाद: "हे मैत्रेयी! अमृतत्व (अविनाशी आत्मा की प...

महर्षि गार्गी वाचक्नवी: वैदिक युग की स्त्री ब्रह्मज्ञानी

 महर्षि गार्गी वाचक्नवी: वैदिक युग की स्त्री ब्रह्मज्ञानी 🔹 भूमिका प्राचीन भारतीय दर्शन में जब हम ऋषियों की परंपरा की चर्चा करते हैं, तो प्रायः पुरुष नामों का ही उल्लेख होता है। परंतु यदि हम ध्यानपूर्वक वैदिक वाङ्मय और उपनिषदों का अध्ययन करें, तो हमें वहाँ एक ऐसी तेजस्वी स्त्री ऋषि का भी उल्लेख मिलता है जिसने केवल धर्म और ब्रह्मविद्या में भाग नहीं लिया, बल्कि उसकी सीमाओं को भी चुनौती दी। वह नाम है — महर्षि गार्गी वाचक्नवी। गार्गी वह दिव्य स्वर है जिसने ब्रह्म के गूढ़ रहस्यों को जानने हेतु ऋषियों से संवाद कर वैदिक विमर्श को नई ऊँचाइयाँ दीं। गार्गी का जीवन परिचय और वैदिक काल वंश और जन्म गार्गी का संबंध गर्ग गोत्र से था, जो महर्षि गार्ग के वंशज माने जाते हैं। इनके पिता का नाम वाचक्नव था, इस कारण वे “वाचक्नवी” भी कहलाईं। गार्गी का जन्म वैदिक काल (संभवतः 800–600 ई.पू.) के उत्तर भाग में हुआ, जब वैदिक मंत्र, यज्ञ, ब्रह्मविद्या और आत्मज्ञान का चरम उत्कर्ष चल रहा था। शिक्षा और ज्ञानार्जन बाल्यकाल से ही गार्गी को वेदों, ब्राह्मणों और उपनिषदों का अध्ययन करने की अभिलाषा थी। उन्होंने केवल औपचा...

उदयनाचार्य: न्याय दर्शन के प्रकाश स्तंभ

उदयनाचार्य: न्याय दर्शन के प्रकाश स्तंभ विस्तारित जीवन परिचय और बौद्धिक पृष्ठभूमि उदयनाचार्य का जन्म मिथिला में हुआ, जो उस समय तर्कशास्त्र, वेद-वेदांग, न्याय और मीमांसा का वैश्विक केंद्र था। मिथिला विश्वविद्यालय और उसके विद्वत मंडल भारतीय बौद्धिक परंपरा की रीढ़ थे। उदयनाचार्य ने उसी महान परंपरा में शिक्षा ग्रहण की, जहाँ वाचस्पति मिश्र , उदयन भट्ट , और गंगेश उपाध्याय जैसे महान विद्वानों का प्रभाव था। उनका समय भारत में बौद्ध धर्म के विकेन्द्रित होते प्रभाव का युग था। नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों में बौद्ध दर्शन की प्रबलता थी। उदयनाचार्य ने उसी समय न्याय-वैशेषिक दर्शन के माध्यम से वैदिक धर्म की पुनर्स्थापना का कार्य प्रारंभ किया। बौद्ध दर्शन का सैद्धांतिक खंडन उदयनाचार्य ने बौद्धों के तीन प्रमुख सिद्धांतों का तार्किक खंडन किया: क्षणिकवाद (Momentariness) बौद्धों का मत था कि प्रत्येक वस्तु क्षणभंगुर है, अर्थात् हर क्षण वह नष्ट हो जाती है। उदयनाचार्य ने इसके विरोध में कहा कि यदि आत्मा भी क्षणिक है तो ज्ञान की निरंतरता (स्मृति, अनुभव, आदि) कैसे संभव होगी? उन्होंने स्मृ...

ऋषि याज्ञवल्क्य: वैदिक युग के अद्वितीय मनीषी

ऋषि याज्ञवल्क्य: वैदिक युग के अद्वितीय मनीषी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ऋषि याज्ञवल्क्य वैदिक काल के उत्तरार्ध में उभरकर सामने आते हैं, जो ईसा पूर्व 8वीं से 6ठीं शताब्दी के मध्य का समय माना जाता है। यह वह काल था जब वैदिक धर्म का स्वरूप कर्मकांड प्रधान से दर्शनप्रधान होने की ओर अग्रसर हो रहा था। इस संक्रमण काल में याज्ञवल्क्य ने न केवल शुक्ल यजुर्वेद की रचना की, बल्कि वेदांत दर्शन की नींव भी रखी। गुरु वैशम्पायन से मतभेद और नवीन वेद की प्राप्ति याज्ञवल्क्य, ऋषि वैशम्पायन के शिष्य थे जो कृष्ण यजुर्वेद के प्रवर्तक माने जाते हैं। एक प्रसंग के अनुसार जब याज्ञवल्क्य ने अपने गुरु से कहा कि वे स्वयं राजा जनक के यज्ञ में श्रेष्ठता सिद्ध करेंगे, तब यह अहंकार समझा गया और उन्हें आश्रम से निष्कासित कर दिया गया। इसके पश्चात उन्होंने सूर्य देवता की तपस्या की और उनसे शुक्ल यजुर्वेद प्राप्त किया, जिसे उन्होंने अपनी शाखा के शिष्यों को सिखाया। इसलिए यह शाखा वाजसनेयी संहिता कहलायी, क्योंकि याज्ञवल्क्य का एक अन्य नाम वाजसनेय था।  प्रमुख शिष्य और वंश परंपरा याज्ञवल्क्य के शिष्यों ने शुक्ल यजुर्वेद...

वाचस्पति मिश्र: भारतीय दर्शन के सार्वभौमिक भाष्यकार

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वाचस्पति मिश्र: भारतीय दर्शन के सार्वभौमिक भाष्यकार   ऐतिहासिक संदर्भ और युग वाचस्पति मिश्र का कार्यकाल लगभग 9वीं से 10वीं शताब्दी के बीच माना जाता है। यह काल भारतीय बौद्धिक जीवन के पुनरुत्थान का युग था जब भारत में विभिन्न दार्शनिक संप्रदाय—जैसे न्याय , वैशेषिक , सांख्य , योग , पूर्व मीमांसा , उत्तर मीमांसा (वेदांत) , और बौद्ध मत—एक-दूसरे से सक्रिय संवाद में थे। इसी समय में अद्वैत वेदांत को शंकराचार्य के पश्चात गहराई और तार्किकता के साथ प्रस्तुत करने की आवश्यकता थी। वाचस्पति मिश्र इसी दार्शनिक पुनरुत्थान के केंद्र में थे। उन्होंने बहुसंख्य दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन करके भारतीय विचार परंपरा को समृद्ध किया। पारिवारिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि वाचस्पति मिश्र का जन्म मिथिला (वर्तमान बिहार) के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। मिथिला उस समय भारत की प्रमुख बौद्धिक राजधानी थी, जहाँ शास्त्रार्थ, वेद, मीमांसा और न्याय-दर्शन की शिक्षा दी जाती थी। यह भूमि याज्ञवल्क्य, मंडन मिश्र, और उदयनाचार्य जैसे महान दार्शनिकों की भी रही है।   किंवदंती : एक लोककथा के अनुसार, वाचस्प...

वीर माता श्रीमती विद्यावती कौर : मातृत्व, बलिदान और राष्ट्रसेवा की प्रतीक(मृत्यु -1 जून 1975)

वीर माता श्रीमती विद्यावती कौर : मातृत्व, बलिदान और राष्ट्रसेवा की प्रतीक(मृत्यु - 1 जून 1975) भारत का इतिहास अनेक वीरों और महापुरुषों की गौरवगाथाओं से भरा पड़ा है, पर उन वीरों को जन्म देने वाली माताओं की तपस्या और त्याग भी उतनी ही महान है। भारतमाता के वीर सपूत भगत सिंह को जन्म देने वाली माता श्रीमती विद्यावती कौर का जीवन देशभक्ति, त्याग, सहनशीलता और आत्मबल का एक अद्वितीय उदाहरण है। वे न केवल एक वीर सपूत की जननी थीं, बल्कि स्वयं भी स्वतंत्रता संग्राम की एक मौन तपस्विनी थीं, जिन्होंने नारी शक्ति की सर्वोच्च मिसाल प्रस्तुत की। संस्कारों से सुसंस्कृत मातृत्व माता विद्यावती का विवाह स्वतंत्रता सेनानी सरदार किशन सिंह से हुआ। उनके ससुर सरदार अर्जुन सिंह कट्टर आर्य समाजी थे और नित्य यज्ञ किया करते थे। ऐसे वातावरण में आने पर विद्यावती जी ने भी आर्य समाज के समाज सुधार कार्यों में रुचि ली और स्वयं को उनमें समर्पित कर दिया। उनका जीवन एक ऐसे परिवार में बीता, जहाँ देशभक्ति और बलिदान की गूंज निरंतर सुनाई देती थी। संघर्षों में तपकर बनीं लौह महिला माता विद्यावती का जीवन अनेक संघर्षों और कष्टों स...