महर्षि गार्गी वाचक्नवी: वैदिक युग की स्त्री ब्रह्मज्ञानी
महर्षि गार्गी वाचक्नवी: वैदिक युग की स्त्री ब्रह्मज्ञानी
🔹 भूमिका
प्राचीन भारतीय दर्शन में जब हम ऋषियों की परंपरा की चर्चा करते हैं, तो प्रायः पुरुष नामों का ही उल्लेख होता है। परंतु यदि हम ध्यानपूर्वक वैदिक वाङ्मय और उपनिषदों का अध्ययन करें, तो हमें वहाँ एक ऐसी तेजस्वी स्त्री ऋषि का भी उल्लेख मिलता है जिसने केवल धर्म और ब्रह्मविद्या में भाग नहीं लिया, बल्कि उसकी सीमाओं को भी चुनौती दी। वह नाम है — महर्षि गार्गी वाचक्नवी। गार्गी वह दिव्य स्वर है जिसने ब्रह्म के गूढ़ रहस्यों को जानने हेतु ऋषियों से संवाद कर वैदिक विमर्श को नई ऊँचाइयाँ दीं।
गार्गी का जीवन परिचय और वैदिक काल
वंश और जन्म
गार्गी का संबंध गर्ग गोत्र से था, जो महर्षि गार्ग के वंशज माने जाते हैं। इनके पिता का नाम वाचक्नव था, इस कारण वे “वाचक्नवी” भी कहलाईं। गार्गी का जन्म वैदिक काल (संभवतः 800–600 ई.पू.) के उत्तर भाग में हुआ, जब वैदिक मंत्र, यज्ञ, ब्रह्मविद्या और आत्मज्ञान का चरम उत्कर्ष चल रहा था।
शिक्षा और ज्ञानार्जन
बाल्यकाल से ही गार्गी को वेदों, ब्राह्मणों और उपनिषदों का अध्ययन करने की अभिलाषा थी। उन्होंने केवल औपचारिक ज्ञान ही नहीं, बल्कि आत्मविद्या (ब्रह्मज्ञान) के रहस्यों को भी जाना। वे ऋग्वेद, यजुर्वेद, तथा ब्रह्मविद्या में पारंगत थीं और उनका बौद्धिक विवेक समकालीन ऋषियों के समकक्ष था।
दार्शनिक और बौद्धिक व्यक्तित्व
ब्रह्मवादिनी का रूप
"ब्रह्मवादिनी" वह स्त्री कहलाती है जो वेदों का अध्ययन करती है और ब्रह्मज्ञान की चर्चा करती है। गार्गी इस परंपरा की सबसे प्रखर प्रतिनिधि थीं। उन्होंने स्त्रियों की तर्क, जिज्ञासा और दार्शनिक संवाद में भागीदारी का एक कालातीत उदाहरण प्रस्तुत किया।
राजा जनक का यज्ञ और ब्रह्मसंवाद
बृहदारण्यक उपनिषद में वर्णित कथा के अनुसार, मिथिला के राजा जनक ने एक ब्रह्मविद्या सम्मेलन आयोजित किया, जिसमें याज्ञवल्क्य, उद्दालक, कश्यप जैसे प्रमुख ऋषि सम्मिलित हुए। यहाँ गार्गी ने याज्ञवल्क्य से ब्रह्म के विषय में जटिल प्रश्न पूछे:
"यत्राकाशश्च प्रतिष्ठितः, कस्मिन्नुत देवो प्रतिष्ठितः?"
(हे याज्ञवल्क्य! वह कौन तत्व है जिसमें यह आकाश स्थित है?)
उनका यह प्रश्न केवल सृष्टि की रचना के स्रोत की नहीं, बल्कि अस्तित्व की अंतिम सत्ता की खोज थी।
दार्शनिक विमर्श की चरमसीमा
गार्गी ने यह प्रश्न किया कि जिस “ब्रह्म” को सब कुछ धारण करता कहा जाता है, वह स्वयं किसमें स्थित है? याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया — “अक्षरम् ब्रह्म” — जो अविनाशी, अव्यक्त, अदृश्य और अनिर्वचनीय है। जब गार्गी ने इस रहस्य को और गहराई से जानने की चेष्टा की, तो याज्ञवल्क्य ने चेतावनी दी:
"मा मोघं पर्यपृच्छः गार्गि — अतिवक्ष्यसि, मूर्धा ते विपतिष्यति।"
(हे गार्गी, अत्यधिक प्रश्न मत करो, अन्यथा तुम्हारा मस्तक फट जाएगा।)
यह कोई अपमान नहीं था, बल्कि यह स्वीकारोक्ति थी कि गार्गी ने उस रहस्य को छूने की चेष्टा की थी, जहाँ मानव बुद्धि की सीमाएँ समाप्त हो जाती हैं।
गार्गी का नारी विमर्श में योगदान
स्त्री स्वतंत्रता का प्रतीक
गार्गी उस युग में उभरीं, जब समाज में स्त्री शिक्षा को सीमित माना जाता था। उनका संवाद यह साक्ष्य प्रस्तुत करता है कि स्त्रियाँ भी ब्रह्मविद्या की उच्चतम चर्चा में भाग ले सकती हैं। वे स्त्री सशक्तिकरण की प्राचीनतम प्रतीक हैं।
भारतीय परंपरा में स्त्री ऋषि
गार्गी के अतिरिक्त मैत्रेयी, लोपामुद्रा, अपाला, घोषा, विश्ववारा आदि स्त्रियाँ भी वैदिक ऋषिकाओं में सम्मिलित थीं, किंतु दार्शनिक संवादों में जितना स्थान गार्गी को मिला, उतना किसी को नहीं।
दार्शनिक दृष्टिकोण और ब्रह्म की अवधारणा
गार्गी की दार्शनिक दृष्टि तत्वमीमांसा (Metaphysics) से जुड़ी थी। उन्होंने पूछा:
ब्रह्माण्ड किसमें स्थित है?
वह तत्व क्या है जो न दृश्य है, न श्रव्य, परंतु सबको धारण करता है?
क्या यह तत्व समय से परे है?
उनकी विचारधारा उपनिषदों के अद्वैत दृष्टिकोण से मिलती है — कि सब कुछ एक ही सत्य का रूप है।
ग्रंथों में गार्गी का उल्लेख
बृहदारण्यक उपनिषद (अध्याय 3 और 4) — याज्ञवल्क्य-गार्गी संवाद
महानारायण उपनिषद — गार्गी का उल्लेख ब्रह्मवादिनी के रूप में
ऋग्वेद — गार्ग गोत्र का आरंभिक उल्लेख
गार्गी की समकालीन और आधुनिक प्रासंगिकता
शिक्षा में आदर्श
गार्गी शिक्षा संस्थानों, विश्वविद्यालयों, महिला महाविद्यालयों और शिक्षण परंपराओं की प्रेरणा हैं। आज भी अनेक संस्थान उनके नाम से चलते हैं जैसे —
"गार्गी कॉलेज" (दिल्ली विश्वविद्यालय)।
नारी विमर्श और नेतृत्व
नारी अधिकार, तर्कशीलता, नेतृत्व और स्वराज के आदर्शों में गार्गी एक कालजयी प्रतीक हैं। उन्होंने दिखाया कि स्त्रियाँ केवल भक्त, माताएँ या सहचर नहीं — दार्शनिक, ऋषि और मार्गदर्शक भी हो सकती हैं।
निष्कर्ष: गार्गी — वैदिक चेतना की दिव्य लौ
गार्गी वाचक्नवी केवल एक ऐतिहासिक स्त्री नहीं थीं — वे एक चेतना, एक दृष्टि, और एक सिद्धांत थीं। उन्होंने न केवल दर्शन को समृद्ध किया, बल्कि यह भी सिद्ध कर दिया कि ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति में स्त्रियों की भूमिका पुरुषों से किसी भी प्रकार कम नहीं है। उनका जीवन स्त्री-बौद्धिकता की सबसे ऊँची चोटी पर स्थापित एक शिखर स्तंभ है।
उनका नाम भारतीय संस्कृति में ज्ञान, साहस, और तात्त्विक आत्म-जागरण का अनंत स्रोत रहेगा।
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