सुनील दत्त: सिनेमा और सेवा के समर्पित सितारे(जन्म: 6 जून 1929 – निधन: 25 मई 2005)
सुनील दत्त: सिनेमा और सेवा के समर्पित सितारे
(जन्म: 6 जून 1929 – निधन: 25 मई 2005)
प्रस्तावना
सुनील दत्त भारतीय सिनेमा के उन विशिष्ट और बहुआयामी कलाकारों में से एक हैं, जिन्होंने न केवल फिल्मी दुनिया में अपनी सशक्त अभिनय क्षमता से पहचान बनाई, बल्कि सामाजिक कार्यों और राजनीति के क्षेत्र में भी अप्रतिम योगदान दिया। उनका जीवन एक आदर्श पुरुष की जीवंत मिसाल है, जिसने संघर्ष, सेवा, संवेदना और सफलता की मिसालें कायम कीं।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
सुनील दत्त का जन्म 6 जून 1929 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के जेलम जिले (अब पाकिस्तान में) के खुर्द गांव में हुआ था। उनका असली नाम बलराज दत्त था। 1947 में भारत के विभाजन के समय उनका परिवार मुंबई आ गया।
उन्होंने जय हिन्द कॉलेज, मुंबई से स्नातक की शिक्षा ग्रहण की और इसके बाद रेडियो Ceylon में उद्घोषक के रूप में काम करना शुरू किया। यहीं से उनकी आवाज़ और व्यक्तित्व की दुनिया ने पहचान बनाई।
फिल्मी करियर की शुरुआत
1955 में आई फिल्म ‘रेलवे प्लेटफॉर्म’ से उन्होंने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने ‘एक ही रास्ता’ (1956), ‘मुनीमजी’ और ‘पायल’ जैसी फिल्मों से दर्शकों के दिलों में जगह बनानी शुरू की।
लेकिन सुनील दत्त को असली प्रसिद्धि मिली 1957 में प्रदर्शित ‘मदर इंडिया’ से, जिसमें उन्होंने नरगिस के पुत्र का किरदार निभाया। इस फिल्म ने न केवल उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दी बल्कि नरगिस के साथ उनके प्रेम का भी सूत्रपात हुआ, जो आगे चलकर विवाह में परिणत हुआ।
प्रमुख फिल्में और अभिनय शैली
सुनील दत्त बहुआयामी अभिनेता थे। उन्होंने रोमांटिक, गंभीर, सामाजिक, एक्शन और हास्य भूमिकाओं को अत्यंत प्रभावशाली ढंग से निभाया। उनकी कुछ प्रसिद्ध फिल्में हैं:
मदर इंडिया (1957)
साधना (1958)
सुजाता (1959)
हमराज (1967)
रेशमा और शेरा (1971) – इस फिल्म का निर्माण, निर्देशन और अभिनय तीनों सुनील दत्त ने किया।
प्राण जाए पर वचन न जाए (1974)
मेरा साया, गुमराह, खानदान, वक्त, पद्मिनी आदि।
उनकी अभिनय शैली में गहराई, गरिमा और भारतीय सामाजिक मूल्यों की झलक मिलती थी। वे अपने किरदारों में भावनात्मक संप्रेषण और नैतिक प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते थे।
निर्माता और निर्देशक के रूप में योगदान
सुनील दत्त ने अपने बैनर Ajanta Arts के अंतर्गत कई फिल्मों का निर्माण किया।
उनकी सबसे महत्वपूर्ण परियोजना ‘रेशमा और शेरा’ थी, जो एक ग्रामीण प्रेम कहानी के माध्यम से सामाजिक विसंगतियों और हिंसा पर कटाक्ष करती है।
उन्होंने प्रयोगधर्मी सिनेमा को भी समर्थन दिया और सिनेमा को सामाजिक परिवर्तन का माध्यम माना।
नरगिस से विवाह और पारिवारिक जीवन
सुनील दत्त ने 1958 में अभिनेत्री नरगिस से विवाह किया। यह विवाह भारतीय सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित और आदर्श विवाहों में गिना जाता है। उनके तीन बच्चे हुए, जिनमें संजय दत्त (प्रसिद्ध अभिनेता) प्रमुख हैं।
नरगिस के कैंसर से पीड़ित होने के दौरान सुनील दत्त ने उनकी सेवा और देखभाल में अभूतपूर्व समर्पण दिखाया। उनकी मृत्यु के बाद उन्होंने नरगिस दत्त फाउंडेशन की स्थापना की जो कैंसर रोगियों की मदद के लिए कार्य करता है।
सामाजिक सेवा और मानवता के लिए योगदान
सुनील दत्त केवल अभिनेता ही नहीं थे, बल्कि वे एक गहरे मानवीय संवेदनाओं वाले व्यक्ति भी थे। 1993 में मुंबई बम धमाकों के बाद जब उनके बेटे संजय दत्त को आतंकवाद के आरोपों में गिरफ्तार किया गया, तो उन्होंने कानून के प्रति सम्मान तो दिखाया ही, साथ ही समाज में सद्भावना बनाए रखने के लिए अनेक कार्य किए।
वे ‘सद्भावना यात्रा’ पर भी निकले, जिसमें वे पैदल भारत भर में घूमते हुए सांप्रदायिक एकता, शांति और मानवता का संदेश लेकर निकले।
राजनीति में प्रवेश और लोकसेवा
1984 में कांग्रेस पार्टी ने उन्हें लोकसभा चुनाव में उतारा और वे मुंबई उत्तर पश्चिम सीट से सांसद चुने गए। इसके बाद वे लगातार पाँच बार लोकसभा सदस्य बने।
राजनीतिक पद:
केंद्रीय युवा कल्याण और खेल मंत्री (2004–2005)
वे भारत सरकार में खेल, युवा और संस्कृति मंत्रालय के मंत्री भी रहे।
उनकी छवि एक स्वच्छ, कर्मठ और संवेदनशील राजनेता की रही। उन्होंने राजनीति को लोकसेवा का माध्यम माना।
सम्मान और पुरस्कार
पद्म श्री (1968) – भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में योगदान के लिए
फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड
राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार
अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उन्हें सम्मानित किया गया।
निधन
25 मई 2005 को दिल का दौरा पड़ने से दिल्ली में उनका निधन हुआ। उनके निधन से भारतीय फिल्मजगत और राजनीति दोनों ने एक संवेदनशील, ईमानदार और समर्पित व्यक्तित्व को खो दिया।
सुनील दत्त की विरासत
सुनील दत्त एक ऐसी शख़्सियत थे जिन्होंने अभिनय, निर्देशन, सामाजिक सेवा और राजनीति – चारों क्षेत्रों में अपनी छाप छोड़ी। उनकी ज़िंदगी भारतीय सिनेमा के आदर्श, भारतीय राजनीति की शुचिता और मानवीय सेवा भावना का संगम है।
वे आज भी उन चंद लोगों में गिने जाते हैं, जिन्होंने स्टारडम को सेवा का माध्यम बनाया। उनका जीवन भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है – कि कैसे संघर्ष से उठकर, संवेदना और सेवा के साथ, समाज में बदलाव लाया जा सकता है।
उपसंहार
सुनील दत्त के जीवन की कहानी केवल एक अभिनेता की नहीं, बल्कि एक ऐसे मानव की है जिसने व्यक्तिगत विपदाओं, सामाजिक चुनौतियों और राजनीतिक उलझनों के बीच भी अपने मूल्यों और सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। उनके जीवन से हमें यह सीख मिलती है कि सच्चा नायक वही होता है जो मंच से उतरने के बाद भी जनहित के मंच पर डटा रहे।
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