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Veer Mata Shrimati Vidyavati Kaur: A Symbol of Motherhood, Sacrifice, and National Service(Demise: 1 June 1975)

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Veer Mata Shrimati Vidyavati Kaur: A Symbol of Motherhood, Sacrifice, and National Service ( Demise: 1 June 1975 ) India’s history is replete with tales of valiant heroes and great personalities, yet the sacrifices and penance of the mothers who gave birth to these heroes are equally glorious. Shrimati Vidyavati Kaur, the revered mother of Shaheed Bhagat Singh, stands as a remarkable example of patriotism, renunciation, endurance, and inner strength. She was not only the mother of a martyr but also a silent ascetic of the freedom struggle who embodied the highest ideals of womanhood. Motherhood Rooted in Noble Values Shrimati Vidyavati was married to freedom fighter Sardar Kishan Singh. Her father-in-law, Sardar Arjun Singh, was a staunch Arya Samajist who performed daily yajnas (sacred rituals). Immersed in such a spiritual and patriotic environment, Vidyavati naturally inclined toward social reform activities of the Arya Samaj and dedicated herself to these causes. H...

नीलम संजीव रेड्डी: भारतीय लोकतंत्र के एक आदर्श व्यक्तित्व( 19 मई 1913 - 1 जून 1996)

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नीलम संजीव रेड्डी: भारतीय लोकतंत्र के एक आदर्श व्यक्तित्व( 19 मई 1913 - 1 जून 1996) प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि नीलम संजीव रेड्डी का जन्म 19 मई 1913 को ब्रिटिश भारत के मद्रास प्रेसीडेंसी के इलुरु ग्राम , अनंतपुर ज़िला (अब आंध्र प्रदेश) में हुआ था। वे एक समृद्ध रेड्डी समुदाय से ताल्लुक रखते थे, जो परंपरागत रूप से कृषक जाति मानी जाती है। उनके पिता नीलम चिन्ना रेड्डी एक प्रतिष्ठित जमींदार थे। बचपन से ही नीलम संजीव रेड्डी के भीतर राष्ट्रभक्ति, सादगी और सेवा भावना का भाव विकसित हुआ। प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय विद्यालय में प्राप्त करने के बाद उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज और गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज, अनंतपुर में शिक्षा ग्रहण की। स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी 1930 के दशक में जब भारत में स्वतंत्रता संग्राम अपने जोरों पर था, नीलम संजीव रेड्डी ने महात्मा गांधी के ‘सत्याग्रह’ आंदोलन से प्रेरित होकर राजनीति में कदम रखा। वे 1931 में कांग्रेस में शामिल हुए और सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन (1942) के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और ज...

महारानी अहिल्या बाई होलकर: न्याय, धर्म और सुशासन की प्रेरक प्रतिमूर्ति(31 मई 1725- 13 अगस्त 1795)

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महारानी अहिल्या बाई होलकर: न्याय, धर्म और सुशासन की प्रेरक प्रतिमूर्ति(31 मई 1725- 13 अगस्त 1795) भारतीय इतिहास की महानतम महिलाओं में से एक महारानी अहिल्या बाई होलकर, नारी शक्ति, धर्मपरायणता, न्यायप्रियता और लोककल्याणकारी शासन की अनूठी मिसाल थीं। 18वीं शताब्दी की इस अद्वितीय शासिका ने अपने विवेक, साहस, धर्मनिष्ठा और प्रशासनिक कौशल से न केवल मालवा राज्य को एक समृद्ध और सुसंगठित राज्य में परिवर्तित किया, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित करने में भी अमूल्य योगदान दिया। वे एक ऐसी महिला थीं जिन्होंने गृहस्थ धर्म, राजधर्म और लोकधर्म – तीनों को एक साथ पूर्णतः निभाया। प्रारंभिक जीवन अहिल्या बाई होलकर का जन्म 31 मई 1725 को चौंडी गाँव, अहमदनगर (महाराष्ट्र) में पिता मानकोजी शिंदे के घर में हुआ था।  इनके पिता एक सामान्य किसान थे। लेकिन अहिल्याबाई  का व्यक्तित्व असाधारण था। बचपन से ही वे धार्मिक, सजग और सेवा-भाव से युक्त थीं। उनकी प्रतिभा को सबसे पहले मल्हार राव होलकर ने पहचाना और अपने पुत्र खांडेराव से उनका विवाह करवाया। विवाह, पारिवारिक जीवन और शासनभार अहिल्य...

Guru Arjan Dev: The Fifth Sikh Guru (15 April 1563 – 30 May 1606)

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Guru Arjan Dev: The Fifth Sikh Guru (15 April 1563 – 30 May 1606) Historical Background The era of Guru Arjan Dev (1563–1606) coincided with the height of the Mughal Empire in India. Emperor Akbar’s rule was relatively tolerant, but his successor Jahangir adopted policies of religious intolerance. During this period, Sikhism was emerging as an organized faith centered on social justice, equality, and devotion. Family and Spiritual Background Guru Arjan Dev was born on 15 April 1563 in Goindwal (Punjab). He was the youngest son of Guru Ram Das and Mata Bhani. Mata Bhani was the daughter of Guru Amar Das, thus linking Guru Arjan Dev to a strong lineage of spiritual guidance and organizational wisdom. From an early age, he immersed himself in meditation, service, devotional singing (kirtan), and humility. He had two elder brothers – Prithi Chand and Mahadev. Prithi Chand, driven by ambition to succeed as Guru, opposed Guru Arjan. However, Arjan Dev bore the tensions with ...

Chaudhary Charan Singh: A Great Farmer Leader and Statesman (23 December 1902 – 29 May 1987)(Fifth Prime Minister of India)

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Chaudhary Charan Singh: A Great Farmer Leader and Statesman (23 December 1902 – 29 May 1987)(Fifth Prime Minister of India) Chaudhary Charan Singh was one of the rare Indian politicians who devoted his entire life to the upliftment of farmers, laborers, and the rural society. Known for his powerful oratory, principled leadership, administrative acumen, policy firmness, and personal integrity, he became a towering figure in Indian politics. Early Life and Education Chaudhary Charan Singh was born on 23 December 1902 in a humble farmer’s family in Noorpur village, Meerut district, Uttar Pradesh. From a young age, he was hardworking and scholarly. He completed his graduation in science in 1923 and earned a Master's degree from Agra University in 1925. Subsequently, he pursued law and began practicing as a lawyer in Ghaziabad. Entry into Politics In 1929, he moved to Meerut and became involved in the Indian freedom movement. In 1937, he was elected for the first time t...

Veer Savarkar: Life and Legacy (28 May 1883 – 26 February 1966)

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Veer Savarkar: Life and Legacy (28 May 1883 – 26 February 1966) Introduction Vinayak Damodar Savarkar, popularly known as Veer Savarkar , was a great revolutionary, thinker, politician, lawyer, poet, and writer of the Indian freedom movement. He is considered one of the main pillars of the ideology of Hindutva. His life was a unique saga of struggle, sacrifice, and dedication to his beliefs. Early Life and Education Veer Savarkar was born on 28 May 1883 in the village of Bhagur in Nashik district, Maharashtra. His father was Damodar Pant Savarkar and mother Radhabai Savarkar. He belonged to a Chitpavan Brahmin family. From a young age, Savarkar showed leadership skills and a deep sense of patriotism. He completed his early education in Nashik. In 1901, he passed the matriculation examination and enrolled in Fergusson College in Pune. An exceptionally brilliant student, he was inspired by nationalist ideals. As a teenager, he drew inspiration from stories of Shivaji and...

Pandit Jawaharlal Nehru (14 November 1889 – 27 May 1964)Term: 15 August 1947 – 27 May 1964 | Party: Indian National Congress

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Pandit Jawaharlal Nehru (14 November 1889 – 27 May 1964) Term: 15 August 1947 – 27 May 1964 | Party: Indian National Congress Early Life and Education Pandit Jawaharlal Nehru was born on 14 November 1889 in Allahabad (now Prayagraj) into a wealthy and well-educated family. His father, Motilal Nehru, was a renowned lawyer. Nehru received his early education at home from private tutors. At the age of fifteen, he went to England, where he studied for two years at Harrow School. He later graduated with a degree in Natural Sciences from the University of Cambridge. He pursued law at the Inner Temple and returned to India in 1912. Beginning of Political Career In 1912, Nehru attended the Indian National Congress session in Bankipur as a delegate for the first time. In 1916, he met Mahatma Gandhi, an encounter that deeply influenced him. In 1919, he became the Secretary of the Home Rule League in Allahabad, and in 1920, organized the first peasant march in Pratapgarh, Uttar P...

डॉ. चंपक रमन पिल्लै: विदेश में सुलगती स्वतंत्रता की मशाल(15 सितम्बर 1891 - 26 मई 1934)

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डॉ. चंपक रमन पिल्लै: विदेश में सुलगती स्वतंत्रता की मशाल(15 सितम्बर 1891 - 26 मई 1934) भूमिका भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की कथा केवल भारत भूमि तक सीमित नहीं रही। यह संघर्ष उन विदेशों तक भी फैला जहां भारतवासी अपनी मातृभूमि के लिए स्वप्न और साहस दोनों लेकर पहुँचे थे। डॉ. चंपक रमन पिल्लै ऐसे ही विलक्षण योद्धा थे जिन्होंने जर्मनी की धरती से अंग्रेज़ी साम्राज्य को चुनौती दी और भारतीय स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र क्रांति के बीज बोए। वे न केवल एक क्रांतिकारी थे, बल्कि दूरदर्शी नेता, लेखक, और रणनीतिक विचारक भी थे। पारिवारिक पृष्ठभूमि और प्रारंभिक जीवन चंपक रमन पिल्लै का जन्म 15 सितम्बर 1891 को त्रिवेंद्रम (वर्तमान केरल) में हुआ। उनका संबंध एक शिक्षित और प्रतिष्ठित तमिल परिवार से था। बचपन से ही वे तेजस्वी और स्वाभिमानी प्रवृत्ति के थे। भारत में अंग्रेज़ी शासन की अमानवीयता और दमन ने उनके मन में विद्रोह की भावना जागृत कर दी थी। शिक्षा के लिए उन्होंने यूरोप का रुख किया और जर्मनी में विज्ञान, राजनीति और दर्शन की उच्च शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने कई भाषाओं में दक्षता प्राप्त की – जिनमें ...

क्रांतिकारी रास बिहारी बोस (25 मई 1886- 21 जनवरी 1945)

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क्रांतिकारी रास बिहारी बोस (25 मई 1886- 21 जनवरी 1945) प्रस्तावना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की गाथा कई महान आत्माओं के बलिदान से रची गई है। इन क्रांतिवीरों में रास बिहारी बोस का नाम अत्यंत सम्मान और गौरव के साथ लिया जाता है। वे एक ऐसे महानायक थे जिन्होंने न केवल भारत में क्रांति की चिंगारी भड़काई, बल्कि विदेश में रहकर भी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को एक सशक्त दिशा दी। रास बिहारी बोस की रणनीतिक सोच, वैश्विक दृष्टिकोण और संगठनात्मक क्षमता ने स्वतंत्रता संग्राम को एक अंतरराष्ट्रीय स्वरूप प्रदान किया। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा रास बिहारी बोस का जन्म 25 मई 1886 को पश्चिम बंगाल के 24 परगना ज़िले के सुबलद्वीप गांव में हुआ था। बचपन से ही उनमें असाधारण बुद्धिमत्ता और देशप्रेम की भावना थी। प्रारंभिक शिक्षा के उपरांत उन्होंने विज्ञान और तकनीकी विषयों में रुचि ली। उन्होंने 'फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट', देहरादून में एक रसायनज्ञ और टाइपिस्ट के रूप में कार्य किया, परंतु उनका हृदय सदा देश के लिए धड़कता रहा। उनकी देशभक्ति और विद्रोही विचारों का बीज तब पड़ा जब वे बंग-भंग आंदोलन (1...

क्रांतिकारी करतार सिंह सराभा: स्वतंत्रता संग्राम के युवा दीपस्तंभ(24 मई 1896- 16 नवम्बर 1915)

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क्रांतिकारी करतार सिंह सराभा: स्वतंत्रता संग्राम के युवा दीपस्तंभ(24 मई 1896- 16 नवम्बर 1915) पारिवारिक पृष्ठभूमि और प्रारंभिक शिक्षा करतार सिंह सराभा का जन्म 24 मई 1896 को पंजाब के लुधियाना जिले के सराभा नामक गाँव में हुआ। वे एक सम्पन्न जमींदार परिवार से थे। बचपन में ही उनके पिता का निधन हो गया, और उनका पालन-पोषण उनके दादा ने किया। करतार सिंह अत्यंत होशियार और आत्माभिमानी बालक थे। प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने लुधियाना में प्राप्त की, और उच्च शिक्षा के लिए मात्र 16 वर्ष की आयु में अमेरिका चले गए। अमेरिका में छात्र जीवन और राष्ट्रवाद की जागृति करतार सिंह ने अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्कले में रसायन शास्त्र (Chemistry) में अध्ययन प्रारंभ किया। परंतु अमेरिका में भारतीय मजदूरों की दुर्दशा और वहाँ के नस्लवादी व्यवहार ने उन्हें गहराई से झकझोर दिया। वे भारत माता की परतंत्रता के मूल कारणों को समझने लगे। ग़दर पार्टी से जुड़ाव: 1913 में अमेरिका में भारतीय प्रवासियों द्वारा गठित ग़दर पार्टी के साथ वे सक्रिय रूप से जुड़ गए। पार्टी का लक्ष्य भारत को सशस्त्र क्रांति द्...

बछेंद्री पाल : भारत की प्रथम महिला एवरेस्ट विजेता जिसने दुनिया की सबसे ऊँची चोटी माउंट एवरेस्ट पर 23 मई 1984 को विजय प्राप्त कर इतिहास रच दिया (जन्म - 24 मई 1954 )

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बछेंद्री पाल : भारत की प्रथम महिला एवरेस्ट विजेता जिसने दुनिया की सबसे ऊँची चोटी माउंट एवरेस्ट पर 23 मई 1984 को विजय प्राप्त कर इतिहास रच दिया (जन्म - 24 मई 1954 ) परिचय बछेंद्री पाल एक ऐसा नाम है जो साहस, संकल्प और सफलता का प्रतीक बन चुका है। वे भारत की प्रथम महिला पर्वतारोही हैं जिन्होंने दुनिया की सबसे ऊँची चोटी माउंट एवरेस्ट पर 23 मई 1984 को विजय प्राप्त कर इतिहास रच दिया। उनका यह अद्वितीय साहसिक कार्य न केवल महिलाओं के लिए बल्कि समस्त भारतीयों के लिए प्रेरणास्त्रोत बना। प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा बछेंद्री पाल का जन्म 24 मई 1954 को उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले के नकुरी गाँव में एक सामान्य परिवार में हुआ। उनके पिता नामक पाल एक सीमांत व्यापारी थे और भूटान व तिब्बत तक व्यापार के लिए जाते थे। बचपन से ही बछेंद्री कठिन परिस्थितियों में जीना सीखी थीं। उन्हें पढ़ाई के साथ-साथ घरेलू कामों में भी हाथ बँटाना पड़ता था। पर्वतों के बीच जन्मी-बड़ी होने के कारण उनका प्रकृति और पर्वतों से गहरा संबंध रहा। वे पढ़ाई में मेधावी छात्रा थीं। स्नातक और परवर्ती शिक्षा के बाद उन्होंने न...

राजा राम मोहन राय(22 मई 1772- 27 सितंबर 1833)

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राजा राम मोहन राय(22 मई 1772- 27 सितंबर 1833) परिचय राजा राम मोहन राय (1772-1833) भारत के नवजागरण काल के अग्रदूत, महान समाज सुधारक, शिक्षाविद्, धर्म चिंतक और पत्रकार थे। उन्होंने भारतीय समाज को अंधविश्वास, रूढ़ियों और सामाजिक कुरीतियों से मुक्ति दिलाने का अनवरत प्रयास किया। उन्होंने आधुनिक भारत की नींव रखने में जो योगदान दिया, उसके लिए उन्हें "आधुनिक भारत का जनक" कहा जाता है। जन्म और प्रारंभिक जीवन राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई 1772 को बंगाल के हुगली जिले के राधानगर गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम रामकांत राय और माता का नाम तारिणी देवी था। वे बचपन से ही बुद्धिमान, तर्कशील और स्वतंत्र सोच वाले थे। उन्होंने संस्कृत, अरबी, फारसी, हिंदी और अंग्रेज़ी का गहन अध्ययन किया। शिक्षा राम मोहन राय ने संस्कृत की शिक्षा वाराणसी में, अरबी और फारसी की शिक्षा पटना में प्राप्त की। उन्होंने कुरान, बाइबिल, उपनिषद, वेदांत और इस्लामिक दर्शन का गहराई से अध्ययन किया। इससे उनमें विभिन्न धर्मों के प्रति समभाव और तार्किक दृष्टिकोण विकसित हुआ। उन्होंने इंग्लैं...

स्वतंत्रता सेनानी जानकी देवी बजाज (7 जनवरी 1893 -21 मई 1979)

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स्वतंत्रता सेनानी जानकी देवी बजाज (7 जनवरी 1893 -21 मई 1979)  परिचय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अनेक पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी अपने अद्वितीय योगदान से इतिहास को समृद्ध किया। इन वीरांगनाओं में एक प्रेरणास्रोत नाम है— जानकी देवी बजाज । वे एक समर्पित स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेविका, गांधीवादी विचारधारा की अनुयायी और देशभक्त महिला थीं, जिन्होंने अपने जीवन का अधिकांश भाग राष्ट्र और समाज की सेवा में समर्पित कर दिया। प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि जानकी देवी बजाज का जन्म 7 जनवरी 1893 को ब्रिटिश भारत के एक समृद्ध मारवाड़ी परिवार में हुआ था। उनका विवाह प्रतिष्ठित उद्योगपति और स्वतंत्रता सेनानी जमनालाल बजाज से हुआ, जो महात्मा गांधी के निकटतम अनुयायियों में से एक थे। विवाह के बाद जानकी देवी ने पारंपरिक गृहिणी की भूमिका को राष्ट्रसेवा और समाज सुधार से जोड़कर एक अनोखी मिसाल पेश की। वे अपने पति के साथ स्वतंत्रता संग्राम के संघर्षों में भागीदार बनीं और स्वराज की राह पर बढ़ चलीं। गांधीवादी प्रभाव और राष्ट्रीय आंदोलन में भागीदारी महात्मा गांधी के आदर्शों का जानकी देवी पर गहर...

सुमित्रानंदन पंत(20 मई 1900- 28 दिसंबर 1977)

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सुमित्रानंदन पंत(20 मई 1900- 28 दिसंबर 1977)  जन्मभूमि और प्रारंभिक जीवन का प्रभाव सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 को उत्तराखंड के कौसानी नामक स्थान पर हुआ, जो हिमालय की गोद में बसा एक रमणीय पर्वतीय क्षेत्र है। उनके जन्म के कुछ समय बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया। यह घटना उनके कोमल बाल-मन पर गहरा प्रभाव डाल गई और उनके व्यक्तित्व में एक अंतर्मुखी संवेदनशीलता का संचार हुआ। कौसानी की प्राकृतिक छटा—बर्फ से ढकी पर्वत-श्रृंखलाएँ, नील आकाश, सुरम्य वन, पुष्पवती घाटियाँ—ने उनके अंतर्मन में सौंदर्य के प्रति अत्यंत कोमल और उदात्त भाव जगाए। यही कारण है कि उन्हें हिंदी का "प्रकृति का सुकुमार कवि" कहा जाता है। शिक्षा और बौद्धिक विकास पंत जी ने प्रारंभिक शिक्षा कौसानी और अल्मोड़ा में प्राप्त की। इसके बाद वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ाई के लिए आए, जहाँ वे तत्कालीन राष्ट्रवादी आंदोलन और साहित्यिक गतिविधियों के संपर्क में आए। इलाहाबाद उस समय हिंदी साहित्य का प्रमुख केंद्र था। वहीं उन्होंने "गोसाईं दत्त" से अपना नाम बदलकर सुमित्रानंदन पंत रखा। वे अंग्रेज...

बिपिन चंद्र पाल(7 नवंबर 1858- 20 मई 1932)

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बिपिन चंद्र पाल(7 नवंबर 1858- 20 मई 1932) प्रस्तावना भारत का स्वतंत्रता संग्राम अनेक चरणों और विचारधाराओं से होकर गुज़रा। इस संग्राम में जहाँ एक ओर गांधीजी के अहिंसावादी आंदोलनों ने जनजागरण किया, वहीं दूसरी ओर गरम दल के नेताओं ने राष्ट्रवाद को तीव्र वेग और साहस प्रदान किया। इन गरमपंथियों में बिपिन चंद्र पाल (Bipin Chandra Pal) का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण और विशिष्ट है। वे न केवल एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि आधुनिक भारत के एक जागरूक विचारक, समाज-सुधारक, ओजस्वी वक्ता और निर्भीक पत्रकार भी थे। जीवन परिचय पूरा नाम: बिपिन चंद्र पाल जन्म: 7 नवंबर 1858, पोइल, सिलीट, बंगाल (अब बांग्लादेश में) पिता: रसायनी चंद्र पाल (संस्कृत विद्वान और वैष्णव विचारधारा से प्रभावित) शिक्षा: प्रेसिडेंसी कॉलेज, कलकत्ता (अधूरी शिक्षा); स्वाध्यायी विचारक मृत्यु: 20 मई 1932, कोलकाता बिपिन चंद्र पाल का जन्म एक मध्यमवर्गीय बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वे प्रारंभ से ही अध्ययनशील, तार्किक और विचारशील प्रवृत्ति के थे। वैष्णव परंपरा में पले-बढ़े होने के बावजूद वे अंधश्रद्धा और रूढ़...

पंकज उधास: भारतीय ग़ज़ल गायकी का एक अमिट स्वर(17 मई 1951- 24 फरवरी 2024)

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पंकज उधास: भारतीय ग़ज़ल गायकी का एक अमिट स्वर(17 मई 1951- 24 फरवरी 2024)   पारिवारिक पृष्ठभूमि और प्रारंभिक जीवन पंकज उधास का जन्म 17 मई 1951 को गुजरात के राजकोट ज़िले के जेतपुर नगर में एक संगीतप्रेमी परिवार में हुआ था। उनके पिता, केशुभाई उधास, एक सुशिक्षित एवं कला-प्रेमी व्यक्ति थे, जो खुद भी एक अच्छा दिलरुबा (एक वाद्य यंत्र) वादक थे। इस माहौल ने पंकज उधास और उनके भाइयों – मनीहर और निर्मल – को संगीत की ओर आकर्षित किया। मनीहर उधास पहले ही ग़ज़ल गायन में सक्रिय हो चुके थे, जो पंकज के लिए एक प्रेरणा बने। पंकज की प्रारंभिक शिक्षा राजकोट के सेंट मैरी स्कूल में हुई। यहीं पर उन्होंने पहली बार एक संगीत प्रतियोगिता में भाग लिया और ऐ मेरे वतन के लोगों गाकर पुरस्कार जीता। इसके बाद उनका रुझान और गहराता चला गया। उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा गुरु गोपालदास से ली और आगे चलकर म्यूजिक कॉलेज, मुंबई में दाख़िला लिया।   करियर की शुरुआत और ग़ज़ल की ओर रुख पंकज उधास ने अपने करियर की शुरुआत बॉलीवुड में पार्श्वगायक के रूप में की थी, परंतु उन्हें वह पहचान नहीं मिली जो वे चाहते...

सिक्किम स्थापना दिवस (16 May 1975)

सिक्किम स्थापना दिवस (16 May 1975) भूमिका सिक्किम स्थापना दिवस (Sikkim Statehood Day) हर वर्ष 16 मई को मनाया जाता है। यह दिन न केवल सिक्किमवासियों के लिए गौरव का प्रतीक है, बल्कि भारत के संघीय ढांचे की विविधता और एकता को भी दर्शाता है। 16 मई 1975 को सिक्किम भारत का 22वां राज्य बना था। इस ऐतिहासिक दिन ने न केवल सिक्किम के राजनीतिक भविष्य को बदल दिया, बल्कि इसकी सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक यात्रा में भी एक नया अध्याय जोड़ा। सिक्किम का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य सिक्किम एक समय में एक स्वतंत्र बौद्ध राजशाही था, जिसकी स्थापना 1642 ई. में हुई थी। यहाँ पर चोग्याल वंश के राजाओं का शासन था। 19वीं शताब्दी में सिक्किम पर ब्रिटिश प्रभाव बढ़ा और फिर 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद यह एक "संरक्षित राज्य" (protectorate) बना रहा। भारत और चीन के बीच 1962 के युद्ध के बाद सिक्किम की सामरिक महत्ता और बढ़ गई। भारत में विलय और राज्य का दर्जा 1970 के दशक की शुरुआत में सिक्किम में लोकतंत्र की मांग तेज हो गई। जनता राजशाही से असंतुष्ट थी। अंततः 1975 में एक जनमत संग्रह हुआ जिसमें अधिकांश लोगों ...

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी:हिंदी साहित्य का शिल्पी, युग-निर्माता और भाषाई जागरण का अग्रदूत(15 मई 1864- 21 दिसंबर 1938 )

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आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी: हिंदी साहित्य का शिल्पी, युग-निर्माता और भाषाई जागरण का अग्रदूत(15 मई 1864- 21 दिसंबर 1938 ) भूमिका हिंदी साहित्य के इतिहास में यदि किसी एक व्यक्ति को आधुनिक हिंदी गद्य और साहित्य की नींव का निर्माता कहा जाए, तो वह नाम होगा — आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी । उन्होंने न केवल भाषा को साहित्यिक अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया, बल्कि साहित्य को समाज सुधार, नैतिक जागरण और राष्ट्रीय चेतना से जोड़ा। उनके व्यक्तित्व में आलोचक की दृष्टि, शिक्षक की दूरदर्शिता, संपादक की सजगता और लेखक की सृजनशीलता एक साथ दिखाई देती है। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म 15 मई 1864 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली ज़िले के दौलतपुर गाँव में हुआ था। उनके पिता रामसहाय द्विवेदी ब्रिटिश भारतीय सेना में कार्यरत थे, लेकिन बाद में संत स्वभाव अपना लिया। धार्मिक एवं शिक्षित वातावरण ने बालक महावीर के भीतर अध्ययन, स्वाध्याय और चिंतन की गहरी प्रवृत्ति विकसित की। बाल्यकाल में उन्होंने पारंपरिक रूप से संस्कृत, हिंदी, उर्दू और फ़ारसी का अध्ययन किया। अंग्रेज़ी शिक्षा की ओर ...