नीलम संजीव रेड्डी: भारतीय लोकतंत्र के एक आदर्श व्यक्तित्व( 19 मई 1913 - 1 जून 1996)
नीलम संजीव रेड्डी: भारतीय लोकतंत्र के एक आदर्श व्यक्तित्व( 19 मई 1913 - 1 जून 1996)
प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि
नीलम संजीव रेड्डी का जन्म 19 मई 1913 को ब्रिटिश भारत के मद्रास प्रेसीडेंसी के इलुरु ग्राम, अनंतपुर ज़िला (अब आंध्र प्रदेश) में हुआ था। वे एक समृद्ध रेड्डी समुदाय से ताल्लुक रखते थे, जो परंपरागत रूप से कृषक जाति मानी जाती है। उनके पिता नीलम चिन्ना रेड्डी एक प्रतिष्ठित जमींदार थे।
बचपन से ही नीलम संजीव रेड्डी के भीतर राष्ट्रभक्ति, सादगी और सेवा भावना का भाव विकसित हुआ। प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय विद्यालय में प्राप्त करने के बाद उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज और गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज, अनंतपुर में शिक्षा ग्रहण की।
स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी
1930 के दशक में जब भारत में स्वतंत्रता संग्राम अपने जोरों पर था, नीलम संजीव रेड्डी ने महात्मा गांधी के ‘सत्याग्रह’ आंदोलन से प्रेरित होकर राजनीति में कदम रखा। वे 1931 में कांग्रेस में शामिल हुए और सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया।
उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन (1942) के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और जेल भी गए। स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा अधूरी छोड़ दी।
राजनीतिक जीवन की शुरुआत और मुख्यमंत्री पद
भारत की स्वतंत्रता के बाद वे आंध्र प्रदेश की राजनीति के प्रमुख स्तंभ बने। 1951 में वे आंध्र प्रदेश विधानसभा के सदस्य बने और जल्दी ही कांग्रेस नेतृत्व का विश्वास अर्जित कर लिया।
1 अक्टूबर 1953 को आंध्र प्रदेश का गठन हुआ, जो तमिल भाषी मद्रास प्रांत से अलग हुआ। 1956 में भाषाई आधार पर संयुक्त आंध्र प्रदेश के गठन के बाद, नीलम संजीव रेड्डी को पहला मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया। उनका कार्यकाल (1956–1960, 1962–1964) दो बार रहा।
मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने:
- सिंचाई योजनाओं को प्राथमिकता दी
- शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना की
- भूमि सुधार और कृषि नीति पर कार्य किया
- राजस्व प्रशासन को सुचारू बनाया
उनकी कार्यशैली में कठोर अनुशासन, प्रशासनिक दक्षता और भ्रष्टाचार के प्रति असहिष्णुता प्रमुख थीं।
कांग्रेस नेतृत्व में भूमिका
नीलम संजीव रेड्डी ने दो बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया—पहली बार 1960 में और दूसरी बार 1964 में। वे उस समय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के विश्वासपात्रों में माने जाते थे। वे कांग्रेस संगठन को अनुशासित और विचारधारा-निष्ठ बनाए रखने के लिए जाने जाते थे।
लोकसभा अध्यक्ष के रूप में (1967–1969)
1967 में वे लोकसभा के अध्यक्ष (स्पीकर) चुने गए। यह उनका अत्यंत सम्मानजनक और ऐतिहासिक कार्यकाल था, जिसमें उन्होंने:
- संसदीय प्रक्रियाओं में मर्यादा और निष्पक्षता बनाए रखी
- विपक्ष और सरकार दोनों के बीच संतुलन साधा
- नए सांसदों को संसदीय कार्यप्रणाली से परिचित कराने की व्यवस्था की
उनका कार्यकाल अब भी भारतीय संसदीय इतिहास में एक मॉडल स्पीकरशिप के रूप में माना जाता है।
राष्ट्रपति पद के लिए पहली असफलता (1969)
1969 में, राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन के निधन के बाद राष्ट्रपति चुनाव हुए। कांग्रेस में विभाजन हो गया था—एक ओर थे इंदिरा गांधी, दूसरी ओर संगठन के पुराने नेता। संगठन कांग्रेस ने नीलम संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाया, लेकिन इंदिरा गांधी ने वी. वी. गिरी को समर्थन दिया।
रेड्डी को हार का सामना करना पड़ा और वे राजनीति से संन्यास लेकर कर्नाटक के अनंतपुर लौट गए, जहाँ वे खेती में लग गए।
राष्ट्रपति के रूप में निर्विरोध चुनाव (1977–1982)
आपातकाल (1975–77) के बाद हुए आम चुनावों में जनता पार्टी सत्ता में आई। 1977 में जब फखरुद्दीन अली अहमद का निधन हुआ, तब राष्ट्रपति पद के लिए नीलम संजीव रेड्डी को दोबारा नामित किया गया। इस बार वे निर्विरोध चुने गए राष्ट्रपति, जो भारतीय इतिहास में पहला ऐसा उदाहरण था।
राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने:
- कार्यपालिका की शक्तियों पर संवैधानिक सीमाएँ निर्धारित करने की ओर ध्यान दिया
- लोकतंत्र की बहाली के लिए जनता पार्टी के अंतर्कलह के बीच भी संवैधानिक मर्यादा बनाए रखी
- दो बार लोकसभा भंग करने की सिफारिश को स्वीकृति दी—पहली बार मोरारजी देसाई सरकार के पतन के बाद और दूसरी बार चरण सिंह सरकार के अल्पमत में होने पर
उनका राष्ट्रपति कार्यकाल राजनीतिक रूप से अस्थिर समय में भी गंभीर, संतुलित और मर्यादित रहा।
सेवानिवृत्ति और बाद का जीवन
1982 में राष्ट्रपति पद से हटने के बाद उन्होंने कोई पद ग्रहण नहीं किया और सार्वजनिक जीवन से दूर रहकर सादा जीवन अपनाया। वे गांधीवादी मूल्यों के प्रति जीवन भर प्रतिबद्ध रहे।
निधन
1 जून 1996 को हैदराबाद में उनका निधन हो गया। उनके निधन पर राष्ट्र ने एक सादगी, ईमानदारी और लोकतंत्र के रक्षक को खो दिया।
नीलम संजीव रेड्डी की विशेषताएँ:
- भारत के पहले निर्विरोध चुने गए राष्ट्रपति
- राष्ट्रपति बनने से पहले मुख्यमंत्री, कांग्रेस अध्यक्ष, लोकसभा अध्यक्ष जैसे पदों पर कार्य कर चुके थे
- सादगी और विनम्रता का प्रतीक—राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद न ही बंगला लिया, न पेंशन, और न ही विशेषाधिकार
- लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वायत्तता और गरिमा के रक्षक
- गांधीवादी मूल्यों पर आधारित संपूर्ण सार्वजनिक जीवन
निष्कर्ष
नीलम संजीव रेड्डी का जीवन एक राजनीतिक तपस्वी का जीवन था, जिसने सत्ता को साधन नहीं, सेवा का माध्यम माना। उनकी सादगी, संवैधानिक निष्ठा और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता आज के नेताओं के लिए एक प्रेरणा है। वे भारत के उन गिने-चुने नेताओं में थे जिन्होंने सर्वोच्च पदों पर रहते हुए भी व्यक्तिगत जीवन में नैतिकता और सादगी को सर्वोपरि रखा।
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