स्वतंत्रता सेनानी जानकी देवी बजाज (7 जनवरी 1893 -21 मई 1979)

स्वतंत्रता सेनानी जानकी देवी बजाज (7 जनवरी 1893 -21 मई 1979) 


परिचय
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अनेक पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी अपने अद्वितीय योगदान से इतिहास को समृद्ध किया। इन वीरांगनाओं में एक प्रेरणास्रोत नाम है—जानकी देवी बजाज। वे एक समर्पित स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेविका, गांधीवादी विचारधारा की अनुयायी और देशभक्त महिला थीं, जिन्होंने अपने जीवन का अधिकांश भाग राष्ट्र और समाज की सेवा में समर्पित कर दिया।

प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
जानकी देवी बजाज का जन्म 7 जनवरी 1893 को ब्रिटिश भारत के एक समृद्ध मारवाड़ी परिवार में हुआ था। उनका विवाह प्रतिष्ठित उद्योगपति और स्वतंत्रता सेनानी जमनालाल बजाज से हुआ, जो महात्मा गांधी के निकटतम अनुयायियों में से एक थे। विवाह के बाद जानकी देवी ने पारंपरिक गृहिणी की भूमिका को राष्ट्रसेवा और समाज सुधार से जोड़कर एक अनोखी मिसाल पेश की। वे अपने पति के साथ स्वतंत्रता संग्राम के संघर्षों में भागीदार बनीं और स्वराज की राह पर बढ़ चलीं।

गांधीवादी प्रभाव और राष्ट्रीय आंदोलन में भागीदारी
महात्मा गांधी के आदर्शों का जानकी देवी पर गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने गांधी जी के सत्य, अहिंसा और स्वदेशी आंदोलन को अपने जीवन का मूल मंत्र बना लिया। उन्होंने विदेशी वस्त्रों का त्याग किया, खादी धारण की और स्वयं चरखा कातने लगीं। वे नमक सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन और व्यक्तिगत सत्याग्रह जैसे कई आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लेती थीं और कई बार उन्हें जेल भी जाना पड़ा
उनका योगदान केवल आंदोलन तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने समाज के निचले तबके—विशेषकर महिलाओं और हरिजनों (अब अनुसूचित जातियों) के उत्थान के लिए भी सक्रिय रूप से कार्य किया। उन्होंने जातिवाद और छुआछूत के विरुद्ध खुलकर मोर्चा लिया और गांधी जी के हरिजन उद्धार आंदोलन को सहयोग दिया।

समाजसेवा और महिला सशक्तिकरण
जानकी देवी बजाज महिला शिक्षा की प्रबल समर्थक थीं। उन्होंने न केवल महिलाओं को शिक्षित करने का कार्य किया, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों की भी शुरुआत की। उन्होंने पर्दा-प्रथा, बाल-विवाह और छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज़ उठाई।
उनका मानना था कि जब तक समाज की महिलाएं जागरूक और स्वतंत्र नहीं होंगी, तब तक भारत सच्चे अर्थों में स्वतंत्र नहीं हो सकता। उन्होंने कई ग्रामीण क्षेत्रों में महिला संगठनों की स्थापना की और स्वयंसेविकाओं को नेतृत्व के लिए प्रेरित किया।

पुरस्कार और सम्मान
उनके सामाजिक कार्यों और राष्ट्र के प्रति योगदान को भारत सरकार ने भी सम्मानित किया। उन्हें 1956 में ‘पद्म विभूषण’ से नवाज़ा गया, जो भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। यह सम्मान उन्हें समाजसेवा, महिला सशक्तिकरण और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान के लिए प्रदान किया गया।

निधन
देश की यह महान पुत्री 21 मई 1979 को इस संसार से विदा हो गईं। उनका निधन उस युग का अंत था, जिसमें संघर्ष, सेवा और त्याग को जीवन का आदर्श माना जाता था। उन्होंने एक ऐसे युग की नींव रखी जिसमें महिलाओं को सामाजिक चेतना, आत्मनिर्भरता और राष्ट्रसेवा का मार्ग मिला।

उपसंहार
जानकी देवी बजाज भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की उन विभूतियों में से हैं, जिन्होंने अपने कर्म, त्याग और सेवा से देश को एक नई दिशा दी। वे केवल एक स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं थीं, बल्कि सामाजिक चेतना की अग्रदूत, महिला सशक्तिकरण की प्रतीक और गांधीवाद की जीवंत प्रतिमूर्ति थीं। उनके जीवन से यह स्पष्ट होता है कि सच्ची देशभक्ति केवल आंदोलनों में भाग लेने से नहीं, बल्कि समाज को अंदर से सुधारने के प्रयासों से भी प्रकट होती है। उनका जीवन आज भी उन सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत है, जो निस्वार्थ भाव से देश और समाज की सेवा करना चाहते हैं।


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