बछेंद्री पाल : भारत की प्रथम महिला एवरेस्ट विजेता जिसने दुनिया की सबसे ऊँची चोटी माउंट एवरेस्ट पर 23 मई 1984 को विजय प्राप्त कर इतिहास रच दिया (जन्म - 24 मई 1954 )
बछेंद्री पाल : भारत की प्रथम महिला एवरेस्ट विजेता जिसने दुनिया की सबसे ऊँची चोटी माउंट एवरेस्ट पर 23 मई 1984 को विजय प्राप्त कर इतिहास रच दिया (जन्म - 24 मई 1954 )
परिचय
बछेंद्री पाल एक ऐसा नाम है जो साहस, संकल्प और सफलता का प्रतीक बन चुका है। वे भारत की प्रथम महिला पर्वतारोही हैं जिन्होंने दुनिया की सबसे ऊँची चोटी माउंट एवरेस्ट पर 23 मई 1984 को विजय प्राप्त कर इतिहास रच दिया। उनका यह अद्वितीय साहसिक कार्य न केवल महिलाओं के लिए बल्कि समस्त भारतीयों के लिए प्रेरणास्त्रोत बना।
प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा
बछेंद्री पाल का जन्म 24 मई 1954 को उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले के नकुरी गाँव में एक सामान्य परिवार में हुआ। उनके पिता नामक पाल एक सीमांत व्यापारी थे और भूटान व तिब्बत तक व्यापार के लिए जाते थे। बचपन से ही बछेंद्री कठिन परिस्थितियों में जीना सीखी थीं। उन्हें पढ़ाई के साथ-साथ घरेलू कामों में भी हाथ बँटाना पड़ता था।
पर्वतों के बीच जन्मी-बड़ी होने के कारण उनका प्रकृति और पर्वतों से गहरा संबंध रहा। वे पढ़ाई में मेधावी छात्रा थीं। स्नातक और परवर्ती शिक्षा के बाद उन्होंने नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग (NIM), उत्तरकाशी से पर्वतारोहण की विधिवत ट्रेनिंग ली।
पर्वतारोहण की यात्रा
बछेंद्री पाल ने पर्वतारोहण का प्रशिक्षण लेने के बाद कई छोटी-बड़ी चढ़ाइयाँ कीं। वर्ष 1982 में उन्होंने 6,922 मीटर ऊँची गंगोत्री चोटी और 6,600 मीटर ऊँची रुदुगैरा चोटी पर सफल चढ़ाई की। इन सफलताओं ने उन्हें एवरेस्ट मिशन के लिए उपयुक्त उम्मीदवार बना दिया।
माउंट एवरेस्ट विजय (1984)
साल 1984 में भारत सरकार द्वारा आयोजित "एवरेस्ट-84" अभियान के लिए बछेंद्री पाल का चयन हुआ। यह अभियान भारत के पर्वतारोहण इतिहास की एक बड़ी योजना थी। इस अभियान में कुल 18 पर्वतारोहियों को शामिल किया गया था, जिसमें 5 महिलाएँ थीं।
23 मई 1984 को, 30 वर्षीय बछेंद्री पाल ने 8,848 मीटर ऊँची माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुँच कर इतिहास रच दिया। वे एवरेस्ट फतह करने वाली भारत की पहली महिला बन गईं। यह दिन भारतीय पर्वतारोहण के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है।
बछेंद्री पाल के बाद का जीवन और योगदान
एवरेस्ट विजय के बाद बछेंद्री पाल ने टाटा स्टील के एडवेंचर फाउंडेशन में बतौर निदेशक काम किया। उन्होंने महिला सशक्तिकरण के लिए कई साहसिक अभियानों का नेतृत्व किया, जिनमें महिलाएँ हिमालय के दुर्गम क्षेत्रों में ट्रेकिंग करती थीं।
कुछ प्रमुख अभियानों में शामिल हैं:
- 1993 – “Indo-Nepal Women’s Everest Expedition” का नेतृत्व।
- 1997 – “Great Indian Women’s Rafting Voyage”: गंगा नदी में 2,500 किमी की यात्रा।
- 2004 – “Mission Ganga”: स्वच्छता और जलसंरक्षण के संदेश के साथ यात्रा।
सम्मान और पुरस्कार
बछेंद्री पाल के अद्वितीय योगदान और साहस को कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया:
- पद्मश्री (1984) – भारत सरकार द्वारा चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान
- अर्जुन पुरस्कार (1986)
- राष्ट्रीय साहस पुरस्कार
- लिम्का बुक ऑफ रेकॉर्ड्स में नाम शामिल
- उत्तराखंड गौरव सम्मान
प्रेरणा का स्रोत
बछेंद्री पाल नारी शक्ति की सशक्त प्रतीक हैं। उन्होंने यह सिद्ध किया कि कठिन परिस्थितियाँ भी सफलता की राह में बाधा नहीं बन सकतीं। उन्होंने ग्रामीण पृष्ठभूमि से निकल कर देश और दुनिया को दिखाया कि साहस, परिश्रम और संकल्प से असंभव को भी संभव किया जा सकता है।
निष्कर्ष
बछेंद्री पाल का जीवन भारत की उन बेटियों के लिए प्रेरणा है, जो बड़े सपने देखती हैं और उन्हें पूरा करने का साहस रखती हैं। उनके साहसिक कार्य और समाज के लिए उनका योगदान उन्हें एक युगद्रष्टा महिला के रूप में स्थापित करता है।
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