डॉ. जाकिर हुसैन: एक शिक्षाविद, राष्ट्रभक्त और महान राष्ट्रपति(8 फ़रवरी 1897- 3 मई 1969)
डॉ. जाकिर हुसैन: एक शिक्षाविद, राष्ट्रभक्त और महान राष्ट्रपति(8 फ़रवरी 1897- 3 मई 1969)
भारतीय इतिहास में कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं, जो अपने बहुआयामी योगदानों के कारण युगों-युगों तक स्मरण किए जाते हैं। डॉ. जाकिर हुसैन ऐसे ही एक महान पुरुष थे—स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद, विचारक और भारत के तीसरे राष्ट्रपति। उनका सम्पूर्ण जीवन शिक्षा, राष्ट्रसेवा और मानवीय मूल्यों की अलख जगाने में समर्पित रहा। वे न केवल एक कुशल प्रशासक और संवैधानिक प्रमुख थे, बल्कि एक ऐसे विचारशील कर्मयोगी भी थे जिन्होंने शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन का सबसे सशक्त माध्यम माना।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
डॉ. जाकिर हुसैन का जन्म 8 फ़रवरी 1897 को हैदराबाद में एक प्रतिष्ठित पठान परिवार में हुआ। बाल्यकाल से ही उनके अंदर ज्ञान के प्रति गहन आकर्षण था। पारंपरिक इस्लामी शिक्षा के साथ-साथ उन्होंने आधुनिक शिक्षा की ओर भी कदम बढ़ाया। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान उन्होंने अपनी विलक्षण प्रतिभा और राष्ट्रप्रेम से सबका ध्यान आकर्षित किया। वहीं उन्होंने यह संकल्प लिया कि शिक्षा के माध्यम से समाज को सशक्त बनाना ही उनका जीवनधर्म होगा।
स्वतंत्रता संग्राम और शिक्षा में योगदान
1920 में जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन का आह्वान किया, तब जाकिर हुसैन ने अपनी उच्च शिक्षा बीच में छोड़कर राष्ट्रसेवा को प्राथमिकता दी। इसी काल में उन्होंने अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर जामिया मिलिया इस्लामिया की स्थापना की—एक ऐसा शैक्षिक संस्थान जो ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली के विकल्प के रूप में भारतीय मूल्यों पर आधारित शिक्षा देने के लिए बना। वे लंबे समय तक इस संस्था के कुलपति रहे और इसे राष्ट्रीय आंदोलन का सांस्कृतिक और बौद्धिक केंद्र बनाने में अग्रणी भूमिका निभाई।
डॉ. हुसैन का मानना था कि शिक्षा केवल किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण, कौशल विकास और सामाजिक चेतना का माध्यम है। उन्होंने गांधीजी के 'बुनियादी शिक्षा' के सिद्धांत को आत्मसात किया और व्यावसायिक शिक्षा को भी बराबर महत्व दिया। उनके अनुसार, शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी पाना नहीं, बल्कि समाज में जिम्मेदार नागरिक तैयार करना है।
विचारशीलता और साहित्यिक योगदान
डॉ. जाकिर हुसैन एक बहुभाषाविद और दार्शनिक भी थे। उर्दू, अंग्रेज़ी और जर्मन भाषाओं पर उनका गहरा अधिकार था। उन्होंने प्लेटो, रसेल जैसे पश्चिमी चिंतकों के साथ-साथ भारतीय दार्शनिक परंपराओं का भी गहन अध्ययन किया। उनके लेखन में शैक्षिक और सांस्कृतिक चिंतन की स्पष्ट झलक मिलती है। बच्चों के लिए लिखी गई उनकी कहानियाँ आज भी नैतिक शिक्षा और सरल भाषा के उत्कृष्ट उदाहरण मानी जाती हैं।
सार्वजनिक जीवन और राष्ट्रप्रेम
1957 से 1962 तक वे बिहार के राज्यपाल रहे और फिर उपराष्ट्रपति के रूप में उन्होंने भारतीय लोकतंत्र को सशक्त बनाने में सहयोग दिया। 1967 में वे भारत के तीसरे राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। इस पद पर रहते हुए उन्होंने राष्ट्र की गरिमा, अखंडता और सांविधानिक मर्यादाओं की रक्षा की। वे भारतीय लोकतंत्र के सजग प्रहरी थे, जिन्होंने कभी भी राजनीतिक दबावों के आगे झुकना स्वीकार नहीं किया।
धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीय एकता
डॉ. जाकिर हुसैन का जीवन धर्मनिरपेक्षता और समावेशिता का प्रतीक था। उन्होंने जीवनभर भारत की सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक सहिष्णुता को बल दिया। उनका मानना था कि भारत की ताकत उसकी विविधता में है, और हर नागरिक को समान अवसर मिलना चाहिए। वे सांप्रदायिक सौहार्द के सच्चे प्रतिनिधि थे।
मृत्यु और स्थायी विरासत
3 मई 1969 को राष्ट्रपति पद पर रहते हुए ही उनका निधन हो गया। यह राष्ट्र के लिए एक अपूरणीय क्षति थी। लेकिन उनकी विचारधारा, उनकी शिक्षा प्रणाली और उनका समर्पण आज भी भारतीय समाज में जीवित है। जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय आज एक अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त शैक्षिक संस्थान बन चुका है, जो उनके आदर्शों को आगे बढ़ा रहा है।
निष्कर्ष
डॉ. जाकिर हुसैन का जीवन हमें यह संदेश देता है कि शिक्षा, सेवा और ईमानदारी से एक व्यक्ति न केवल समाज को दिशा दे सकता है, बल्कि राष्ट्र के निर्माण में भी निर्णायक भूमिका निभा सकता है। वे भारतीय इतिहास की एक ऐसी प्रेरणादायक विभूति हैं, जिनकी स्मृति में न केवल गौरव छिपा है, बल्कि भविष्य की राह दिखाने वाली रोशनी भी।
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