*जूड़-शीतल: मिथिला का पारंपरिक त्योहार(एक सांस्कृतिक धरोहर की अनुभूति)
*जूड़-शीतल: मिथिला का पारंपरिक त्योहार
(एक सांस्कृतिक धरोहर की अनुभूति)
भारतवर्ष की सांस्कृतिक विविधता में मिथिला की परंपराएं एक विशेष स्थान रखती हैं। यहाँ के लोक-त्योहारों में न सिर्फ धार्मिक आस्था झलकती है, बल्कि जीवन के प्राकृतिक चक्रों से जुड़ाव भी स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। ऐसा ही एक अनुपम त्योहार है — जूड़-शीतल।
जूड़-शीतल: नाम का अर्थ
'जूड़' का अर्थ होता है शीतलता या ठंडक पहुँचाना, और 'शीतल' का अर्थ है ठंडा या शांत। इस पर्व का उद्देश्य है – जीवन में शीतलता, शांति और ताजगी लाना। यह त्योहार गर्मी के प्रारंभ में, बैसाख माह के पहले दिन (वैशाख संक्रांति) मनाया जाता है, जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है और गर्मी अपना प्रभाव दिखाने लगती है।
इस पर्व का प्रकृति से संबंध
मिथिला की संस्कृति हमेशा प्रकृति के साथ तालमेल में रही है। जूड़-शीतल पर्व इस संबंध का सुंदर उदाहरण है। यह पर्व न केवल पर्यावरण की शुद्धता और शीतलता की कामना करता है, बल्कि घर-परिवार, खेत-खलिहान, और पशु-पक्षियों तक की शीतलता सुनिश्चित करने की भावना से जुड़ा होता है।
पर्व की पूर्व संध्या (चैत्र संक्रांति की रात)
घर की सफाई की जाती है।
आंगन, छप्पर, और दीवारों पर जल छिड़क कर उन्हें शीतल किया जाता है।
पानी से भरकर घड़े और हांड़ियों को छत पर रखा जाता है ताकि वे ठंडे हो जाएं।
खास भोजन – पका हुआ चावल (भींजा चाउर), दही, कच्चा आम, कड़वे नीम के पत्ते आदि को तैयार किया जाता है।
घर के बुजुर्गों का आशीर्वाद लिया जाता है।
मुख्य पर्व – वैशाख संक्रांति का दिन
सुबह उठते ही घर के सभी सदस्य एक-दूसरे पर ठंडा पानी छिड़कते हैं, विशेषकर बुजुर्ग बच्चों के सिर पर ठंडा जल डालकर आशीर्वाद देते हैं।
‘भींजा चाउर’ (पिछली रात भिगोया गया चावल), दही, आम का टुकड़ा, नीम की पत्तियाँ और नमक का सेवन किया जाता है।
यह भोजन शरीर को ठंडक प्रदान करता है और स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
घर के पशुओं को भी ठंडा पानी पिलाया जाता है और उन्हें साफ-सुथरी जगह पर रखा जाता है।
पर्व का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
आपसी मेल-मिलाप: इस दिन गांव-समाज के लोग एक-दूसरे से मिलते हैं, शुभकामनाएँ देते हैं और समरसता का भाव उत्पन्न होता है।
पर्यावरण संरक्षण: जल का महत्व और शीतलता की महत्ता का भाव पनपता है।
स्वास्थ्य पर ध्यान: ऋतु परिवर्तन के समय शरीर को ठंडक देना, नीम जैसी औषधियों का सेवन करना इस त्योहार की वैज्ञानिक दृष्टि को दर्शाता है।
सांस्कृतिक परंपरा: यह पर्व मिथिला की मौलिक परंपराओं को नई पीढ़ी तक पहुँचाने का माध्यम है।
लोकगीतों और रीति-रिवाजों में जूड़-शीतल
मिथिला की स्त्रियाँ इस पर्व पर पारंपरिक लोकगीत गाती हैं, जैसे:
भींजल चाउर, दहि नीम के संगे, शीतल करे मन, तन, जीवन के रंगे।”
इन गीतों में मौसम, प्रकृति, और जीवन की मधुरता का समावेश होता है।
नवीन पीढ़ी के लिए सन्देश
आज जब पर्यावरण संकट और पारिवारिक दूरी बढ़ती जा रही है, जूड़-शीतल जैसे त्योहार हमें हमारी जड़ों की ओर लौटने की प्रेरणा देते हैं। यह पर्व बताता है कि सादगी में भी उल्लास है, परंपरा में भी विज्ञान है, और संस्कृति में ही सच्चा सुख है।
जूड़-शीतल केवल एक पर्व नहीं, मिथिला की आत्मा है। यह जीवन में संतुलन, ठहराव और आत्मिक शीतलता लाने का संदेश देता है। आने वाली पीढ़ियों को यह समझाना ज़रूरी है कि ये परंपराएं केवल अतीत की बात नहीं, बल्कि एक स्वस्थ, सुखद और संतुलित भविष्य की कुंजी हैं।
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