बसंत कुमार बिस्वास: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का युवा क्रांतिकारी( 6 फरवरी 1895- 11 मई 1915)


बसंत कुमार बिस्वास: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का युवा क्रांतिकारी( 6 फरवरी 1895- 11 मई 1915)

परिचय:

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अनेक युवाओं ने अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए प्राणों की आहुति दी। उन वीर सपूतों में एक उल्लेखनीय नाम है बसंत कुमार बिस्वास। मात्र 20 वर्ष की अल्पायु में उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एक ऐसा साहसी कार्य किया, जिसने उन्हें भारत के इतिहास में अमर कर दिया। वे युगांतर दल के सक्रिय सदस्य थे और 1912 में ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंकने की ऐतिहासिक घटना के मुख्य योजनाकार थे।

प्रारंभिक जीवन:

बसंत कुमार बिस्वास का जन्म 6 फरवरी 1895 को पोरागाचा गाँव, नादिया ज़िला, बंगाल प्रेसीडेंसी (अब पश्चिम बंगाल) में हुआ था। उनके पिता का नाम मातिलाल बिस्वास था, जो एक किसान परिवार से संबंध रखते थे। बाल्यकाल से ही बसंत अत्यंत मेधावी, साहसी और राष्ट्र के प्रति संवेदनशील थे।

वे कोलकाता के बेकन स्कूल और बाद में रेशमी कपड़ों की कंपनी में काम करते हुए रास बिहारी बोस और अमरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय जैसे क्रांतिकारियों के संपर्क में आए। यहीं से उनके जीवन की दिशा क्रांति की ओर मुड़ गई।

क्रांतिकारी जीवन और युगांतर दल:

बसंत बिस्वास "युगांतर" नामक गुप्त क्रांतिकारी संगठन से जुड़ गए, जो भारत में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह का पक्षधर था। इस संगठन में उन्हें बम बनाने, छिपकर कार्य करने और अंग्रेजों के विरुद्ध योजनाएं बनाने का प्रशिक्षण दिया गया।

दिल्ली-लाहौर षड्यंत्र (1912):

23 दिसंबर 1912 को दिल्ली में जब भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड हार्डिंग अपने राज्याभिषेक के अवसर पर हाथी पर सवार होकर जुलूस में भाग ले रहे थे, तब उनके जुलूस पर एक बम फेंका गया। यह हमला चांदनी चौक के पास हुआ। इस हमले में वायसराय गंभीर रूप से घायल हुए और उनके अंगरक्षक की मृत्यु हो गई।

यह बम फेंकने की योजना रास बिहारी बोस और अमरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय के नेतृत्व में बनाई गई थी और इस कार्य को अंजाम देने के लिए बसंत कुमार बिस्वास को चुना गया। उन्होंने महिला वेश में छिपकर बम फेंका और बाद में सुरक्षित निकलने में सफल रहे, लेकिन कुछ ही समय बाद गिरफ्तार कर लिए गए।

गिरफ्तारी और मुकदमा:

बसंत कुमार बिस्वास की गिरफ्तारी के बाद उन्हें ब्रिटिश सरकार ने "राजद्रोह और हत्या का प्रयास" जैसे गंभीर अपराधों में आरोपित किया। उन्हें दिल्ली-लाहौर षड्यंत्र का प्रमुख अभियुक्त मानते हुए न्यायिक प्रक्रिया चलाई गई। यह मुकदमा 1913 से 1915 तक चला।

ब्रिटिश अदालत ने उन्हें दोषी ठहराते हुए 11 मई 1915 को अंबाला सेंट्रल जेल में फांसी की सजा सुनाई। उस समय बसंत की उम्र मात्र 20 वर्ष थी। अपनी मृत्यु से पहले उन्होंने अपने देशवासियों से स्वतंत्रता की लड़ाई को जारी रखने का आह्वान किया।

बसंत कुमार बिस्वास की विशेषताएँ:

  1. अल्पायु में देशप्रेम: मात्र 17 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ क्रांतिकारी रास्ता चुना।
  2. साहस और योजना क्षमता: वायसराय जैसे उच्च पदस्थ अधिकारी पर बम फेंकने जैसी योजना में सक्रिय भूमिका निभाई।
  3. त्याग का आदर्श: मृत्यु को भी उन्होंने मुस्कुराते हुए गले लगाया, यह दर्शाता है कि वे किसी भी कीमत पर देश को स्वतंत्र देखना चाहते थे।

विरासत और स्मृति:

आज भी बसंत कुमार बिस्वास का नाम भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है। उनका बलिदान यह सिखाता है कि देश के लिए जीवन की आहुति देना भी गौरव का विषय है। हालांकि उन्हें इतिहास की मुख्यधारा में अपेक्षाकृत कम स्थान मिला, परंतु उनके कार्यों का प्रभाव कालजयी है।

कुछ स्थानों पर उनके नाम पर विद्यालय, सड़कें और स्मारक स्थापित किए गए हैं, विशेषकर पश्चिम बंगाल और हरियाणा में।

निष्कर्ष:

बसंत कुमार बिस्वास ने यह सिद्ध कर दिया कि स्वतंत्रता का मूल्य केवल शब्दों से नहीं, बल्कि त्याग और बलिदान से चुकाया जाता है। उनका जीवन साहस, क्रांति और देशभक्ति की जीवंत मिसाल है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान अमिट और अविस्मरणीय है।

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