ज्ञानी जैल सिंह (5 मई 1916- 25 दिसंबर 1994)

ज्ञानी जैल सिंह (5 मई 1916- 25 दिसंबर 1994)

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

ज्ञानी जैल सिंह का जन्म 5 मई 1916 को पंजाब के फरीदकोट जिले के संधवान गाँव में हुआ था। उनका असली नाम जरनैल सिंहथा। उनके पिता किशन सिंह एक किसान और बढ़ई थे। बचपन में ही उनकी माता का निधन हो गया, जिसके बाद उनका पालन-पोषण उनकी मौसी ने किया। 

शिक्षा के प्रति उनकी रुचि प्रारंभ में कम थी, लेकिन उन्होंने **शहीद सिख मिशनरी कॉलेज, अंबाला** से धार्मिक शिक्षा प्राप्त की और उन्हें "ज्ञानी" की उपाधि दी गई। इस उपाधि के कारण उनका नाम "ज्ञानी जैल सिंह" पड़ा।

स्वतंत्रता संग्राम और राजनीतिक जीवन


ज्ञानी जैल सिंह ने **15 वर्ष की आयु** में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ काम कर रही **अकाली दल** की सदस्यता ले ली थी। 1938 में उन्होंने **प्रजा मंडल** नामक एक राजनीतिक पार्टी का गठन किया, जो भारतीय कांग्रेस के साथ मिलकर ब्रिटिश विरोधी आंदोलन करती थी। इस कारण उन्हें **पांच वर्ष की जेल** की सजा हुई, और उन्होंने अपना नाम बदलकर **जैल सिंह** रख लिया।

1946 में, जब फरीदकोट में ब्रिटिश सरकार ने तिरंगा फहराने से रोका, तो उन्होंने **जवाहरलाल नेहरू** को पत्र लिखकर फरीदकोट आने का निमंत्रण दिया। नेहरू ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें कांग्रेस में शामिल कर लिया।


पंजाब के मुख्यमंत्री और गृह मंत्री के रूप में योगदान

1972 में वे **पंजाब के मुख्यमंत्री** बने। उनके कार्यकाल में औद्योगिक विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हुआ। उन्होंने **गुरु गोविंद सिंह के नाम पर एक राजमार्ग** का उद्घाटन किया और **स्वतंत्रता सेनानियों के लिए आजीवन पेंशन योजना** लागू की।

1980 में जब **इंदिरा गांधी** पुनः सत्ता में आईं, तो उन्होंने ज्ञानी जैल सिंह को **गृहमंत्री** नियुक्त किया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने **देश की आंतरिक सुरक्षा** को मजबूत करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।


राष्ट्रपति कार्यकाल (1982-1987)

25 जुलाई 1982 को ज्ञानी जैल सिंह **भारत के पहले सिख राष्ट्रपति** बने। उनके कार्यकाल के दौरान **ऑपरेशन ब्लू स्टार** और **प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या** जैसी महत्वपूर्ण घटनाएँ हुईं। उन्होंने संवैधानिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए देश में कई संवेदनशील मुद्दों का सामना किया।

हालांकि, उनके कार्यकाल में कई विवाद भी हुए। जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने, तो उनके और ज्ञानी जैल सिंह के बीच मतभेद उभरने लगे। कुछ रिपोर्टों के अनुसार, उन्होंने राजीव गांधी के खिलाफ राष्ट्रपति पद की शक्तियों का उपयोग करने पर विचार किया था, लेकिन अंततः उन्होंने ऐसा नहीं किया।

निधन और विरासत

ज्ञानी जैल सिंह का **25 दिसंबर 1994** को **चंडीगढ़** में निधन हो गया। उनकी मृत्यु एक **कार दुर्घटना** में हुई थी, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन उपचार के दौरान उनका निधन हो गया। भारत सरकार ने उनकी मृत्यु के बाद **सात दिनों के आधिकारिक शोक** की घोषणा की और उनका अंतिम संस्कार **दिल्ली के राजघाट मेमोरियल** में किया गया।

उनकी विरासत और योगदान

ज्ञानी जैल सिंह का जीवन संघर्ष, सेवा और नेतृत्व का प्रतीक रहा। उन्होंने भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान दिया और देश की स्वतंत्रता और विकास के लिए अपना जीवन समर्पित किया। उनकी विरासत आज भी भारतीय राजनीति और इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

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