सिख धर्म के तीसरे गुरु अमरदास जी (5 मई, 1479- 1 सितंबर, 1574)
गुरु अमरदास जी (5 मई, 1479- 1 सितंबर, 1574)
प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि:
गुरु अमरदास जी का जन्म 5 मई, 1479 को बासरके गाँव (अब अमृतसर जिले में) में हुआ था। उनके पिता, तेज भान जी, एक किसान और व्यापारी थे, और उनकी माता का नाम लखमी देवी था। उनका प्रारंभिक जीवन वैष्णव परंपरा में बीता, और उन्होंने कई तीर्थ यात्राएं कीं।
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं से परिचय:
लगभग 60 वर्ष की आयु में, गुरु अमरदास जी की मुलाकात अपनी बहू (गुरु अंगद देव जी की पत्नी, बीबी अमरो) से हुई। बीबी अमरो ने उन्हें गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं और गुरु अंगद देव जी के बारे में बताया। उनकी बातों से प्रभावित होकर, गुरु अमरदास जी गुरु अंगद देव जी से मिलने के लिए खडूर साहिब गए।
गुरु अंगद देव जी की सेवा और शिष्यत्व:
गुरु अमरदास जी गुरु अंगद देव जी की सेवा में पूरी तरह से समर्पित हो गए। उन्होंने गुरु जी के लंगर (सामुदायिक रसोई) के लिए पानी लाना, लकड़ी काटना और अन्य सभी प्रकार के सेवा कार्य निष्ठा से किए। उनकी अटूट श्रद्धा, लगन और विनम्रता ने गुरु अंगद देव जी को बहुत प्रभावित किया। उन्होंने गुरु अंगद देव जी के मार्गदर्शन में सिख धर्म के सिद्धांतों को गहराई से समझा और आत्मसात किया।
गुरु गद्दी की प्राप्ति:
गुरु अंगद देव जी ने अपनी मृत्यु से पहले, 1552 में, गुरु अमरदास जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इस निर्णय से उनके पुत्रों (दासू और दातू) ने विरोध किया, लेकिन गुरु अंगद देव जी अपने निर्णय पर दृढ़ रहे। गुरु अमरदास जी 73 वर्ष की आयु में सिख धर्म के तीसरे गुरु बने।
गोइंदवाल साहिब की स्थापना और विकास:
गुरु अमरदास जी ने गोइंदवाल साहिब नामक नए केंद्र की स्थापना की, जो सिख धर्म के प्रचार और प्रसार का महत्वपूर्ण केंद्र बना। उन्होंने यहां एक बाओली (कुआँ जिसमें सीढ़ियाँ नीचे जाती हैं) का निर्माण करवाया, जिसे पवित्र माना जाता है। इस बाओली के निर्माण से पानी की समस्या दूर हुई और यह सिखों के लिए एक महत्वपूर्ण सामाजिक और धार्मिक स्थल बन गया।
लंगर प्रथा का सुदृढ़ीकरण:
गुरु अमरदास जी ने गुरु नानक देव जी द्वारा शुरू की गई लंगर प्रथा को और अधिक सुदृढ़ किया। उन्होंने यह नियम बनाया कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म या सामाजिक स्थिति का हो, गुरु से मिलने से पहले लंगर में भोजन करेगा। इस प्रथा ने समानता और भाईचारे के संदेश को बढ़ावा दिया और जातिगत भेदभाव को तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मंजी प्रणाली की शुरुआत:
सिख धर्म के संदेश को दूर-दूर तक पहुंचाने और समुदाय को संगठित करने के लिए गुरु अमरदास जी ने 'मंजी' प्रणाली की शुरुआत की। उन्होंने पूरे क्षेत्र को 22 मंजियों (धार्मिक उपदेश केंद्रों) में विभाजित किया और प्रत्येक मंजी पर एक समर्पित और योग्य सिख को प्रभारी नियुक्त किया। ये मंजीदार अपने-अपने क्षेत्रों में सिख धर्म के सिद्धांतों का प्रचार करते थे और संगत (धार्मिक सभा) का आयोजन करते थे।
गुरु ग्रंथ साहिब के संकलन की तैयारी:
गुरु अमरदास जी ने गुरु नानक देव जी और गुरु अंगद देव जी की बाणी (उपदेशों) को एकत्र करने का कार्य शुरू किया। उन्होंने इन पवित्र रचनाओं को व्यवस्थित रूप से संकलित करवाया, जो बाद में गुरु अर्जन देव जी द्वारा गुरु ग्रंथ साहिब के संकलन का आधार बनीं।
सामाजिक सुधार:
गुरु अमरदास जी ने समाज में व्याप्त कई कुरीतियों का विरोध किया। उन्होंने सती प्रथा (पति की मृत्यु के बाद पत्नी को जीवित जलाना) का कड़ा विरोध किया और विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया। उन्होंने महिलाओं की समानता और सम्मान के लिए आवाज उठाई और उन्हें धार्मिक तथा सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
मुगल बादशाह अकबर से भेंट:
गुरु अमरदास जी की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली। मुगल बादशाह अकबर भी उनसे प्रभावित हुए और गोइंदवाल साहिब आकर उनसे मिले। बादशाह ने लंगर में साधारण लोगों के साथ बैठकर भोजन किया और गुरु जी के विचारों का सम्मान किया।
व्यक्तित्व और शिक्षाएं:
गुरु अमरदास जी एक शांत, गंभीर, दृढ़ निश्चयी और दूरदर्शी व्यक्तित्व के धनी थे। उनकी शिक्षाएं ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास, निस्वार्थ सेवा, समानता, भाईचारा और सामाजिक न्याय पर आधारित हैं। उन्होंने सिखों को सरल और सत्यनिष्ठ जीवन जीने, अहंकार से दूर रहने और सभी मनुष्यों को समान समझने का उपदेश दिया। उनका जोर बाहरी आडंबरों की बजाय आंतरिक शुद्धता और भक्ति पर था।
ज्योति जोत समाना:
गुरु अमरदास जी ने 1 सितंबर, 1574 को गोइंदवाल साहिब में अपनी भौतिक देह त्याग दी। उन्होंने अपने दामाद और शिष्य, भाई जेठा जी (जो बाद में गुरु रामदास जी के नाम से जाने गए) को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
गुरु अमरदास जी का जीवन सिख धर्म के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। उन्होंने सिख समुदाय को एक मजबूत आधार प्रदान किया, सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई और समानता तथा सेवा के मूल्यों को स्थापित किया। उनकी शिक्षाएं आज भी मानवता को प्रेरित करती हैं और सिख धर्म के मार्ग को प्रशस्त करती हैं।
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