क्रांतिकारी वासुदेव चापेकर ( 4 जुलाई 1869- 8 मई 1899)
क्रांतिकारी वासुदेव चापेकर ( 4 जुलाई 1869- 8 मई 1899)
परिचय
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में कई ऐसे क्रांतिकारियों के नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित हैं, जिन्होंने राष्ट्र के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। ऐसे ही एक महान क्रांतिकारी थे वासुदेव बलवंत चापेकर, जो भारत में सशस्त्र क्रांति की चिंगारी को सबसे पहले प्रज्वलित करने वालों में गिने जाते हैं। चापेकर बंधुओं ने अपने कर्तव्य, साहस और बलिदान से देशभक्ति की ऐसी मिसाल कायम की, जो आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा है।
प्रारंभिक जीवन
- जन्म: वासुदेव चापेकर का जन्म 4 जुलाई 1869 को पुणे (महाराष्ट्र) में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
- उनके पिता बलवंत चापेकर की धार्मिक प्रवृत्ति और शिक्षा ने वासुदेव को भी वैदिक ज्ञान, रामायण, महाभारत और देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत किया।
- वासुदेव के दो छोटे भाई थे – बालकृष्ण चापेकर और दामोदर चापेकर। तीनों भाईयों में क्रांति और स्वतंत्रता के लिए असाधारण समर्पण था।
राजनीतिक पृष्ठभूमि और ब्रिटिश शासन का दमन
19वीं शताब्दी के अंत तक भारत में ब्रिटिश शासन का अत्याचार और शोषण चरम पर था। अंग्रेजों ने भारतीय जनता को राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से गुलाम बना दिया था। विशेष रूप से पुणे में प्लेग महामारी के दौरान ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा किए गए दमन और अमानवीय व्यवहार ने लोगों के मन में आक्रोश भर दिया था।
प्लेग महामारी और ब्रिटिश अत्याचार
- 1896-97 में प्लेग महामारी पुणे में फैल गई।
- महामारी की रोकथाम के नाम पर ब्रिटिश सरकार ने प्लेग कमिशन की स्थापना की, जिसके अध्यक्ष रैंड (Walter Charles Rand) थे।
- रैंड और उसकी टीम ने भारतीयों के घरों में जबरन घुसकर महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया, धार्मिक प्रतीकों को अपवित्र किया, और नागरिक अधिकारों का खुला उल्लंघन किया।
- यह अत्याचार वासुदेव चापेकर को सहन नहीं हुआ। उन्होंने तय किया कि इस अन्याय का बदला लिया जाएगा।
रैंड की हत्या - भारत में सशस्त्र क्रांति की शुरुआत
- 22 जून 1897 को पुणे में महारानी विक्टोरिया की जयंती मनाई जा रही थी।
- इसी दिन वासुदेव और उनके भाई बालकृष्ण चापेकर ने रैंड और उसके सहयोगी लेफ्टिनेंट आयर्स्ट पर हमला किया।
- उन्होंने रैंड की गोली मारकर हत्या कर दी, जबकि आयर्स्ट घायल हुआ।
- यह घटना स्वतंत्र भारत के इतिहास में ब्रिटिश अधिकारी की पहली हत्या थी जो एक सुनियोजित राजनीतिक उद्देश्यों के तहत की गई थी।
गिरफ्तारी और बलिदान
- चापेकर बंधुओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
- वासुदेव ने न्यायालय में स्पष्ट कहा कि उन्होंने हत्या देश के अपमान और अत्याचार के बदले की भावना से की है और उन्हें अपने कृत्य पर कोई पश्चाताप नहीं है।
- 8 मई 1899 को वासुदेव चापेकर को फांसी दे दी गई।
- उनके भाई बालकृष्ण और दामोदर को भी क्रमश: बाद में फांसी दी गई।
प्रभाव और प्रेरणा
- चापेकर बंधुओं का बलिदान भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक नये युग की शुरुआत थी।
- उन्होंने हिंसक क्रांति की धारणा को जन्म दिया और यह संदेश दिया कि स्वतंत्रता केवल प्रार्थनाओं से नहीं, बल्कि संघर्ष और बलिदान से प्राप्त होती है।
- उनका प्रभाव वीर सावरकर, भगत सिंह, राजगुरु, चंद्रशेखर आज़ाद जैसे क्रांतिकारियों पर पड़ा।
स्मृति और सम्मान
- पुणे सहित महाराष्ट्र में कई स्थानों पर चापेकर बंधुओं की स्मृति में स्मारक बने हैं।
- उनकी जीवनकथा पर आधारित नाटक, उपन्यास और फिल्में भी बनाई गई हैं।
- स्वतंत्र भारत में भी उनकी क्रांतिकारी चेतना को श्रद्धांजलि दी जाती है।
उपसंहार
वासुदेव चापेकर भारत के उन क्रांतिकारियों में से हैं, जिन्होंने बिना किसी व्यक्तिगत लाभ की इच्छा के, मात्र देश के स्वाभिमान के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम क्रांतिकारी योद्धा के रूप में सदैव स्मरणीय रहेंगे। उनका बलिदान आज भी हमें यह सिखाता है कि अन्याय के विरुद्ध प्रतिकार करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।
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