महाराजा छत्रसाल बुंदेला: स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत (3 मई 1649 – 20 दिसंबर 1731)

 महाराजा छत्रसाल बुंदेला: स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत  

महाराजा छत्रसाल बुंदेला (3 मई 1649 – 20 दिसंबर 1731) भारतीय इतिहास के उन वीर योद्धाओं में से एक थे जिन्होंने मुगलों के अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष किया और बुंदेलखंड में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। उनका जीवन शौर्य, कूटनीति और धर्मपरायणता का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता है।  

 प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा  

छत्रसाल का जन्म 3 मई 1649 को ओरछा के बुंदेला राजघराने में हुआ था। उनके पिता चंपतराय बुंदेला वीर योद्धा थे, जिन्होंने मुगल सत्ता के विरुद्ध संघर्ष किया। बचपन से ही छत्रसाल ने युद्धकला, प्रशासन और राजनीति की गहन शिक्षा प्राप्त की। उनका हृदय सदैव अपने पूर्वजों की वीरगाथाओं से प्रेरित रहा।  

मुगलों के विरुद्ध संघर्ष  

17वीं शताब्दी के दौरान भारत में मुगल सत्ता अपने चरम पर थी। औरंगज़ेब की नीतियाँ हिंदू राजाओं के लिए एक बड़ी चुनौती थीं। छत्रसाल ने 1671 में 22 वर्ष की आयु में मुगलों के विरुद्ध अपने संघर्ष की शुरुआत की। उन्होंने बुंदेलखंड के विभिन्न क्षेत्रों में मुगल सत्ता के विरुद्ध युद्ध छेड़ा और सफलतापूर्वक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की।  

उन्होंने अपनी युद्धनीति में गुरिल्ला युद्ध का सहारा लिया और मुगल सेनाओं को बार-बार पराजित किया। छत्रसाल ने अपने राज्य की सीमाएँ बढ़ाई और बुंदेलखंड को स्वतंत्र किया।  

 शिवाजी एवं छत्रसाल का संबंध  

छत्रसाल को महान मराठा शासक शिवाजी से प्रेरणा मिली। कहा जाता है कि उन्होंने शिवाजी से सैन्य रणनीतियाँ सीखीं और उन्हीं की नीतियों का अनुसरण करते हुए मुगलों के विरुद्ध अपने युद्ध अभियान का संचालन किया। शिवाजी की तरह ही उन्होंने छोटे-छोटे गढ़ों और किलों को सुदृढ़ कर अपनी सेना को सशक्त किया।  

 प्रशासन एवं संस्कृति  

महाराजा छत्रसाल केवल युद्धवीर ही नहीं, बल्कि एक योग्य प्रशासक भी थे। उन्होंने अपने राज्य में सुव्यवस्थित प्रशासनिक तंत्र विकसित किया। न्यायप्रिय होने के कारण प्रजा उन्हें अत्यधिक सम्मान देती थी। उन्होंने बुंदेलखंड में कला, संस्कृति और धर्म को संरक्षण दिया। उनके समय में कई मंदिरों, किलों और शहरों का निर्माण हुआ।  

बाजीराव प्रथम से संबंध  

मुगल सत्ता के विरुद्ध संघर्ष में उन्हें मराठा पेशवा बाजीराव प्रथम का समर्थन प्राप्त हुआ। एक प्रसिद्ध घटना के अनुसार, जब मुगलों ने बुंदेलखंड पर आक्रमण किया, तब महाराजा छत्रसाल ने बाजीराव प्रथम से सहायता मांगी। बाजीराव ने मुगलों को पराजित कर बुंदेलखंड को बचाया। इस उपकार के लिए छत्रसाल ने अपनी पुत्री मस्तानी का विवाह बाजीराव से कर दिया।  

 मृत्यु और विरासत  

महाराजा छत्रसाल का निधन 20 दिसंबर 1731 को हुआ ।उनका राज्य तीन हिस्सों में विभाजित हुआ, और उनकी संतानों ने उनके द्वारा स्थापित विरासत को आगे बढ़ाया। उनका नाम आज भी बुंदेलखंड में वीरता और स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीक के रूप में लिया जाता है।  

महाराजा छत्रसाल बुंदेला भारत के उन महान योद्धाओं में से एक थे जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया और अपने क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान को सुदृढ़ किया। उनकी वीरता और कूटनीति भारतीय इतिहास में सदा अमर रहेंगी।  

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