क्रांतिकारी मास्टर अमीचंद(1884-17 नवंबर 1915)
क्रांतिकारी मास्टर अमीचंद(1884-17 नवंबर 1915)
भूमिका
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम अनेक वीरों की गाथाओं से भरा पड़ा है। कुछ नाम तो इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो गए, लेकिन अनेक ऐसे क्रांतिकारी भी हुए जिन्होंने अपने प्राण देश के लिए न्योछावर कर दिए परंतु उन्हें वह मान-सम्मान नहीं मिल सका जिसके वे अधिकारी थे। ऐसे ही एक क्रांतिकारी थे — मास्टर अमीचंद। उनका योगदान गुप्त क्रांतिकारी आंदोलनों, विशेष रूप से गदर आंदोलन से जुड़ा रहा, और उन्होंने अपने जीवन का बलिदान देश को आज़ाद कराने के लिए कर दिया।
प्रारंभिक जीवन
मास्टर अमीचंद का जन्म वर्ष 1884 में ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत में हुआ था। वे एक मध्यमवर्गीय परिवार से संबंध रखते थे और एक शिक्षक (मास्टर) के रूप में कार्य करते थे, इसी कारण उन्हें ‘मास्टर’ की उपाधि से जाना गया। शिक्षा के क्षेत्र में उनकी गहरी पैठ थी, और उन्होंने अपने विद्यार्थियों को केवल पुस्तकीय ज्ञान ही नहीं, बल्कि देशप्रेम और सामाजिक चेतना का पाठ भी पढ़ाया।
देशभक्ति और क्रांतिकारी चेतना
अमीचंद शुरू से ही भारतीय समाज में व्याप्त असमानता, ब्रिटिश शासन की क्रूर नीतियों और दमन के विरुद्ध थे। वे आर्य समाज के विचारों से प्रभावित थे और सामाजिक सुधार तथा राष्ट्रसेवा को सर्वोपरि मानते थे। शिक्षा के साथ-साथ वे युवाओं को संगठित कर ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलनात्मक गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित करते थे।
वे गदर पार्टी के सक्रिय सदस्य बने, जिसका उद्देश्य भारत को हथियारबंद क्रांति के माध्यम से ब्रिटिश शासन से मुक्त कराना था। मास्टर अमीचंद ने विदेशों में रह रहे भारतीयों, विशेष रूप से कनाडा और अमेरिका में बसे पंजाबियों के साथ संपर्क बनाकर, भारत में क्रांतिकारी योजनाओं को मूर्त रूप देने में मदद की।
गदर आंदोलन और मास्टर अमीचंद की भूमिका
1913 में गठित गदर पार्टी भारत में एक क्रांति के माध्यम से ब्रिटिश राज को समाप्त करना चाहती थी। प्रथम विश्व युद्ध (1914) को ब्रिटिश सरकार की कमजोरी के रूप में देखा गया और इसी समय गदरियों ने भारत में सशस्त्र विद्रोह की योजना बनाई। मास्टर अमीचंद पंजाब में इस आंदोलन के प्रमुख सूत्रधारों में से एक थे।
उन्होंने क्रांतिकारी साहित्य का प्रचार किया, हथियारों की व्यवस्था में सहयोग किया और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह के लिए सैनिकों को संगठित किया। उनकी योजना थी कि ब्रिटिश भारतीय सेना के भारतीय जवानों को प्रेरित करके उनका विद्रोह कराया जाए। दुर्भाग्यवश, यह योजना ब्रिटिश गुप्तचर विभाग की जानकारी में आ गई और अनेक नेताओं के साथ मास्टर अमीचंद भी गिरफ्तार कर लिए गए।
गिरफ्तारी और बलिदान
ब्रिटिश सरकार ने मास्टर अमीचंद पर राजद्रोह और षड्यंत्र का मुकदमा चलाया। उन्हें ‘लाहौर षड्यंत्र केस’ में दोषी ठहराया गया। मुकदमे के दौरान उन पर भयंकर अत्याचार हुए लेकिन उन्होंने अपने साथियों की जानकारी नहीं दी। उनका संकल्प और साहस अडिग रहा।
अंततः उन्हें 17 नवंबर 1915 को फाँसी दे दी गई। उनका यह बलिदान भारत की स्वतंत्रता की नींव को और भी मजबूत कर गया।
विरासत और स्मरण
मास्टर अमीचंद आज भले ही आमजन की स्मृति से दूर हों, लेकिन उनके त्याग और देशभक्ति की गाथा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की अमूल्य धरोहर है। पंजाब और क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास में उनका योगदान अविस्मरणीय है। उनका जीवन यह सिखाता है कि वास्तविक शिक्षा वह है जो समाज और राष्ट्र की सेवा में लगे।
निष्कर्ष
मास्टर अमीचंद एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने शिक्षा को ही आंदोलन का माध्यम बनाया और अपने देश को आज़ाद कराने के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। उनका नाम उन गुमनाम नायकों में आता है जिनकी वजह से भारत स्वतंत्र हो सका।
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