प्रथम स्वतंत्रता संग्राम आरम्भ (10 मई 1957)

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम आरम्भ (10 मई 1957)



भूमिका

भारतीय इतिहास में सन् 1857 का वर्ष एक युगांतरकारी मोड़ लेकर आया। इस वर्ष देशभर में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध जो विद्रोह फूटा, उसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम संगठित प्रयास माना जाता है। यद्यपि अंग्रेजों ने इसे "सिपाही विद्रोह" कहकर सीमित करने का प्रयास किया, किंतु वास्तव में यह एक व्यापक जनआंदोलन था जिसमें सैनिकों के साथ आम जनता, राजे-रजवाड़े, किसान, जमींदार, महिलाएं और धार्मिक नेता भी सम्मिलित थे। यह संग्राम भारतीय अस्मिता, संस्कृति, परंपरा और स्वराज्य की रक्षा का पहला संगठित शंखनाद था।

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का पृष्ठभूमि और प्रमुख कारण

1857 का संग्राम अचानक नहीं हुआ, बल्कि यह वर्षों के आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक शोषण का परिणाम था। इसके पीछे कई गहरे कारण थे:

1. राजनीतिक कारण

  • लॉर्ड डलहौजी की "लैप्स नीति" (Doctrine of Lapse) के अंतर्गत झाँसी, सतारा, नागपुर, अवध जैसी रियासतों को बलपूर्वक ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाया गया।
  • राजाओं की संतानों को उत्तराधिकारी मानने से इनकार किया गया, जिससे देशी शासकों में असंतोष पनपा।

2. आर्थिक कारण

  • पारंपरिक कुटीर उद्योगों का विनाश करके ब्रिटिश माल का वर्चस्व थोपा गया।
  • किसानों पर भारी करों का बोझ डाला गया, जिससे वे कर्ज़ में डूबते गए।
  • दस्तकारों और शिल्पकारों की आजीविका छिन गई।

3. धार्मिक और सामाजिक कारण

  • भारतीय समाज की धार्मिक भावनाओं का अपमान किया गया।
  • सती प्रथा, बाल विवाह आदि की आड़ में सामाजिक हस्तक्षेप किया गया।
  • लोगों को शक था कि ईसाई मिशनरियों द्वारा उन्हें जबरन धर्मांतरण कराया जा रहा है।

4. सैन्य कारण

  • अंग्रेज और भारतीय सिपाहियों के बीच भेदभाव था।
  • सिपाहियों को पदोन्नति, वेतन और सम्मान में अपमानजनक व्यवहार झेलना पड़ता था।
  • नई एनफील्ड राइफल की कारतूस पर गाय और सूअर की चर्बी लगी होने की खबर से हिंदू और मुस्लिम सिपाहियों में भारी रोष फैल गया।

विद्रोह का प्रारंभ – मेरठ से दिल्ली तक

  • 29 मार्च 1857 को बैरकपुर में सिपाही मंगल पांडे ने अंग्रेज अधिकारी पर गोली चला दी। यह घटना विद्रोह की शुरुआत का संकेत बनी।
  • 10 मई 1857, मेरठ में 85 भारतीय सिपाहियों ने कारतूस लेने से इनकार कर दिया। उन्हें कारावास की सजा मिली।
  • अगले ही दिन विद्रोह भड़क उठा। सिपाहियों ने जेल तोड़ दी, अंग्रेजों को मारा और दिल्ली की ओर कूच किया।
  • दिल्ली पहुँचकर मुगल सम्राट बहादुर शाह ज़फर को भारत का सम्राट घोषित किया गया। यह प्रतीकात्मक रूप से महत्वपूर्ण था—इसने पूरे भारत को एकजुट होने का मार्ग दिया।

क्रांति का प्रसार और प्रमुख केंद्र

विद्रोह जल्दी ही पूरे उत्तर भारत और मध्य भारत में फैल गया। इसके कुछ प्रमुख केंद्र और नेताओं की भूमिका इस प्रकार है:

1. झाँसी

  • रानी लक्ष्मीबाई ने साहस और युद्ध-कौशल से अंग्रेजों का डटकर सामना किया।
  • “मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी” उनका प्रसिद्ध उद्घोष बन गया।
  • ग्वालियर में युद्ध करते हुए उन्होंने वीरगति प्राप्त की।

2. कानपुर

  • नाना साहेब पेशवा ने नेतृत्व किया।
  • उनके सेनापति तात्या टोपे ने कई युद्धों में अंग्रेजों को कड़ी चुनौती दी।

3. अवध (लखनऊ)

  • नवाब वाजिद अली शाह को हटाए जाने के बाद वहाँ असंतोष फैल गया।
  • बेगम हज़रत महल ने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी और लखनऊ को विद्रोह का केंद्र बनाया।

4. बिहार

  • वीर कुंवर सिंह 80 वर्ष की आयु में भी शौर्यपूर्वक लड़े।
  • उन्होंने आरा, जगदीशपुर आदि क्षेत्रों में अंग्रेजी सत्ता को चुनौती दी।

5. मध्य भारत

  • तात्या टोपे ने छापामार युद्ध पद्धति अपनाकर अंग्रेजों को महीनों तक परेशान किया।

विद्रोह की असफलता के कारण

हालाँकि इस संग्राम ने अंग्रेजों की नींव हिला दी थी, परंतु यह पूर्णतः सफल नहीं हो सका। इसके कुछ प्रमुख कारण थे:

  • विद्रोह असंगठित था और कोई केंद्रीय नेतृत्व नहीं था।
  • दक्षिण भारत और पंजाब जैसे क्षेत्रों में जनसहयोग नहीं मिल सका।
  • अंग्रेजों के पास आधुनिक हथियार, संगठन और रणनीति थी।
  • कुछ देशी रियासतों और राजाओं ने अंग्रेजों का साथ दिया।

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का प्रभाव और महत्व

  • 1857 का संग्राम भले ही असफल रहा, लेकिन इसने स्वतंत्रता की नींव रखी।
  • अंग्रेजों को समझ में आ गया कि भारतीयों को लंबे समय तक गुलाम नहीं रखा जा सकता।
  • ईस्ट इंडिया कंपनी को भंग कर भारत का शासन सीधे ब्रिटिश क्राउन के अधीन कर दिया गया।
  • भारतीयों में राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता की भावना तेज हुई।
  • यही आंदोलन आगे चलकर 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना और महात्मा गांधी के नेतृत्व में व्यापक जनआंदोलनों का आधार बना।

निष्कर्ष

1857 का स्वतंत्रता संग्राम भारत की आत्मा की पुकार थी। यह भारतीय समाज के हर वर्ग की सामूहिक चेतना का परिणाम था। इसने यह स्पष्ट कर दिया कि विदेशी शासन को भारत में लंबे समय तक नहीं टिकाया जा सकता। यह क्रांति भले ही असफल रही हो, लेकिन इसकी चिंगारी ने आने वाली पीढ़ियों के हृदय में आज़ादी की ज्वाला प्रज्वलित कर दी। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भारत के इतिहास का वह स्वर्णिम अध्याय है, जिसकी गूंज सदियों तक प्रेरणा देती रहेगी।


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

माधव सदाशिवराव गोलवलकर (19 फरवरी 1906 – 5 जून 1973)

सुमित्रानंदन पंत(20 मई 1900- 28 दिसंबर 1977)

*जूड़-शीतल: मिथिला का पारंपरिक त्योहार(एक सांस्कृतिक धरोहर की अनुभूति)