मिथिला का इतिहास भाग-2
मगध राज्य के उत्कर्ष के समय में मिथिला
मगध सम्राट अजातशत्रु जिसे कूनिक भी कहा जाता था, पिता की हत्या कर मगध के सिंहासन पर बैठा।
लंबे संघर्ष के बाद इसने वज्जिसंघ को जीत लिया इसका अर्थ यह हुआ कि वज्जिसंघ की राजधानी मिथिला अथवा विदेह भी मगध साम्राज्य का भाग बन चुका था अजातशत्रु ने वज्जिसंघ का विनाश करने के बाद पुनः मिथिला में गणतंत्र शासन चलता रहा।
नंद वंश के संस्थापक महापद्मनंद थे। इन्हें एकछत्र पृथ्वी का राजा, भार्गव( परशुराम )के समान सर्वक्षत्रान्तक
( क्षत्रियों का नाश करने वाला )की उपाधि दी गई। इस समय में मिथिला की शासन प्रणाली गंणतन्त्रातमक ही थी, पुनः राजतंत्र का उदय हुआ ।
मौर्य काल में मिथिला
मधुबनी जिले के बलिराजगढ़ में मौर्य काल के अवशेष मिले हैं। इससे पता चलता है कि इस बलिराजगढ़ का निर्माण मौर्य काल में हुआ था इस समय में राजा बलि का शासन माना जाता है। राजा बलि ने ही बलिराजगढ़ का निर्माण किया था।
गुप्त काल में मिथिला
चंद्रगुप्त प्रथम ने राज्य विस्तार के लिए लिक्षवी राज्य से समझौता किया था। गुप्त काल में मिथिला का लिक्षवी पर शासन था।
पाल वंश के समय मिथिला
पाल वंश के संस्थापक गोपाल थे।उनके पुत्र धर्मपाल उनका उत्तराधिकारी बना। धर्मपाल ने ही मिथिला में प्रसिद्ध विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना पाथरघाट,भागलपुर ( बिहार ) में किया था । धर्मपाल का पुत्र देव पाल उत्तराधिकारी बना उसने उड़ीसा तथा नेपाल के कुछ भाग पर अपना अधिकार किया। देवपाल ने मुंगेर में अपनी राजधानी स्थापित की। इससे पता चलता है कि इस समय मिथिला पाल वंश के अधीन था।
कर्नाटवंश अथवा सिमराव राजवंश (1080ई०से 1324ई०)
विदेह अथवा मिथिला राज्य तथा वज्जि महासंघ से लेकर कर्नाट वंश के प्रतिष्ठा काल से पहले मिथिला का इतिहास पराजय तथा दासता का था। कर्नाटवंश अथवा सिमराव राजवंश के सूत्रपात से मिथिला का नवयुग आरंभ माना जाता है ।
नान्यदेव
कर्नाट वंश के संस्थापक नान्यदेव थे , इन्होंने अपनी पहली राजधानी नान्यपुर को बनाया था । बाद में इन्होंने अपनी राजधानी सिमरांवगढ़ यानी सिमरॉव को बनाया। सिमरॉवगढ़ से मिले साक्ष्य के अनुसार सिमराॉवगढ़ में किला का निर्माण 1097 ई ० माना जाता है । आज के समय में नेपाल में है इसका अर्थ यह हुआ कि इससे पहले भी इस वंश का शासन रहा होगा।
मल्लदेव
इनका शासनकाल कम समय तक रहा किंतु इन्होंने अपनी राजधानी भीठ भगवानपुर को बनाया था ।
गंगदेव( 1147 ई० से 1187 ई०तक)
उन्होंने वर्तमान अंधराठाढ़ी में विशाल राजभवन का निर्माण किया था । अंधराठाढ़ी आज मधुबनी जिला अंतर्गत आता है।
नरसिंह देव (1187 ई० से 1225 ई०)
गंगदेव के उत्तराधिकारी नरसिंह देव थे उन्होंने सामान्य रूप से शासन किया ।
राम सिंह देव (1225 ई० से 1276 ई० )
नरसिंह देव के उत्तराधिकारी राम सिंह देव थे। उन्होंने लगभग 51 वर्षों तक शासन किया।
शक्ति सिंह देव (1276 ई० से 1296ई०)
राम सिंह देव के उत्तराधिकारी शक्ति सिंह देव थे । इन्होंने भी लगभग 20 वर्षों वर्षों तक शासन किया।
1296ई०से 1303ई० तक
1296ई० में शक्ति सिंह देव की मृत्यु हो जाने के पश्चात 7 वर्षों तक मंत्रिपरिषद का शासन रहा।
हरि सिंह देव( 1303ई० से 1324ई०)
शक्ति सिंह देव की मृत्यु के बाद व्यस्क होने पर उनके पुत्र हरिसिंह देव को राजगद्दी मिली । परंतु मुस्लिम आक्रमण के कारण हरि सिंह नेपाल पलायन कर गये।
संकलन
Shweta Mishra
Research Scholar
Magadh University
Bodhgaya,
Gaya
संपादक
Dr. Santosh Anand Mishra
DAV Public School
Manpur
Gaya
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