माधव सदाशिवराव गोलवलकर (19 फरवरी 1906 – 5 जून 1973)
माधव सदाशिवराव गोलवलकर (19 फरवरी 1906 – 5 जून 1973)
माधव सदाशिवराव गोलवलकर, जिन्हें प्रायः "गुरुजी" के नाम से जाना जाता है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के द्वितीय सरसंघचालक थे। वे आरएसएस के सबसे प्रभावशाली नेताओं में गिने जाते हैं और हिन्दुत्व विचारधारा को स्पष्ट रूप देने तथा संगठन को विस्तार देने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
गोलवलकर का जन्म 19 फरवरी 1906 को ब्रिटिश भारत के सेंट्रल प्रोविन्सेज़ एंड बेरार के रामटेक नामक स्थान पर एक मराठी करहाडे ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता सदाशिवराव एक शिक्षक थे और बाद में एक हाई स्कूल के प्रधानाचार्य बने। नौ संतानों में वे एकमात्र जीवित रहने वाले पुत्र थे।
बचपन से ही गोलवलकर को धर्म और आध्यात्म में गहरी रुचि थी। उन्होंने नागपुर के हिस्लॉप कॉलेज में पढ़ाई की, लेकिन बाद में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) चले गए। वहाँ से उन्होंने 1927 में विज्ञान स्नातक (B.Sc.) और 1929 में जीवविज्ञान में स्नातकोत्तर (M.Sc.) की उपाधि प्राप्त की। इसके साथ-साथ उन्होंने कानून की भी पढ़ाई की और BHU में प्राणीशास्त्र के व्याख्याता के रूप में कार्य किया।
आरएसएस में प्रवेश
गोलवलकर शुरू में आरएसएस में अधिक रुचि नहीं रखते थे, लेकिन डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के संपर्क में आने के बाद वे संघ से जुड़ गए। हेडगेवार ने उनके नेतृत्व कौशल को पहचाना और उन्हें कानून की पढ़ाई पूरी करने को प्रेरित किया ताकि वे एक प्रभावशाली नेता के रूप में स्थापित हो सकें।
1934 में उन्हें नागपुर शाखा का कार्यवाह (सेक्रेटरी) बनाया गया। 1936 में वे पश्चिम बंगाल के सरगाछी रामकृष्ण मिशन आश्रम में संन्यास और साधना के उद्देश्य से चले गए, परंतु 1937 में स्वामी अखंडानंद की मृत्यु के पश्चात, हेडगेवार के आग्रह पर वे पुनः संघ में लौट आए।
आरएसएस नेतृत्व में उदय
1939 तक वे आरएसएस के अखिल भारतीय अधिकारी प्रशिक्षण शिविर का संचालन कर रहे थे, जिससे उनकी संगठनात्मक क्षमता स्पष्ट हुई। 1940 में डॉ. हेडगेवार की मृत्यु से पहले ही उन्होंने गोलवलकर को अपना उत्तराधिकारी नामित कर दिया था। 3 जुलाई 1940 को वे औपचारिक रूप से आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक बने।
उनके नेतृत्व में आरएसएस ने अभूतपूर्व विस्तार किया — संगठन की सदस्य संख्या एक लाख से बढ़कर दस लाख से भी अधिक हो गई। उन्होंने राजनीति, शिक्षा, श्रम, और धर्म सहित अनेक क्षेत्रों में आरएसएस की गतिविधियों का विस्तार किया और 'संघ परिवार' के अंतर्गत अनेक सह-संगठनों की स्थापना में भूमिका निभाई।
विचारधारा और नीतियाँ
गोलवलकर हिन्दू राष्ट्र (Hindu Rashtra) के प्रबल समर्थक थे। उनका मानना था कि भारत की एकता और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने के लिए हिन्दू संस्कृति का वर्चस्व आवश्यक है। वे इस्लाम, ईसाई धर्म और कम्युनिज़्म को हिन्दू समाज के लिए खतरे के रूप में देखते थे।
उनकी 1939 में प्रकाशित पुस्तक "We, or Our Nationhood Defined" अत्यंत विवादास्पद रही है। इस पुस्तक में उन्होंने जर्मनी की नस्लीय शुद्धता की नीतियों की प्रशंसा की थी और भारत में भी सांस्कृतिक एकरूपता बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया था। इस कारण उन्हें नाजी विचारधारा से प्रेरित कहा गया।
हालाँकि, उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन का समर्थन किया और हिटलर की आलोचना की। उन्होंने यहूदी समुदाय और इज़राइल की स्थापना के प्रयासों की भी प्रशंसा की थी।
गोलवलकर का मानना था कि भारत के मुस्लिम और ईसाई नागरिकों को हिन्दू संस्कृति को अपनाना चाहिए या फिर हिन्दू बहुसंख्यक समाज के अधीन रहना चाहिए। उनके अनुसार, नागरिक अधिकार और देशभक्ति हिन्दू मूल्यों के प्रति निष्ठा पर आधारित होने चाहिए।
स्वतंत्रता संग्राम और गोलवलकर
गोलवलकर का दृष्टिकोण भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति निरपेक्ष और भिन्न था। उन्होंने आरएसएस कार्यकर्ताओं को 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग न लेने का निर्देश दिया। उनके अनुसार, ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष से अधिक महत्वपूर्ण कार्य हिन्दू समाज को आंतरिक शत्रुओं — मुसलमानों, ईसाइयों और वामपंथियों — से बचाना था।
इस कारण आरएसएस और गोलवलकर को कांग्रेस और स्वतंत्रता सेनानियों की आलोचना झेलनी पड़ी।
गांधीजी की हत्या और आरएसएस पर प्रतिबंध
30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के पश्चात, सरकार ने 4 फरवरी 1948 को आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया। गोलवलकर सहित लगभग 20,000 स्वयंसेवकों को गिरफ्तार किया गया। हालांकि आरएसएस की संलिप्तता प्रमाणित नहीं हुई, फिर भी नाथूराम गोडसे के भाई गोपाल गोडसे ने बाद में कहा कि नाथूराम कभी आरएसएस से पूर्णतः अलग नहीं हुए थे।
गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल से बातचीत के पश्चात गोलवलकर ने आरएसएस के लिए लिखित संविधान बनाने और भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को स्वीकार करने पर सहमति जताई। इसके बाद 11 जुलाई 1949 को आरएसएस से प्रतिबंध हटा लिया गया।
अंतिम वर्ष और विरासत
गोलवलकर 5 जून 1973 तक आरएसएस के सरसंघचालक बने रहे। उनके नेतृत्व में आरएसएस एक मजबूत सामाजिक और राजनीतिक संगठन बना और हिन्दू राष्ट्रवाद की आधारशिला और भी सुदृढ़ हुई।
उनकी विचारधारा आज भी भारतीय राजनीति में, विशेषतः भारतीय जनता पार्टी (BJP) और अन्य संघ परिवार से जुड़े संगठनों के माध्यम से, प्रभावी रूप में उपस्थित है।
विवाद और आलोचना
गोलवलकर का जीवन और विचारधारा अत्यंत विवादास्पद रही है। उनके आलोचक उन्हें फासीवादी और अल्पसंख्यक विरोधी विचारधारा का समर्थक मानते हैं, जबकि उनके समर्थक उन्हें हिन्दू एकता और सांस्कृतिक जागरण का प्रतीक मानते हैं।
हाल के वर्षों में जब कुछ सार्वजनिक संस्थानों का नामकरण उनके नाम पर प्रस्तावित हुआ, जैसे केरल में राजीव गांधी सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी के दूसरे परिसर का नाम, तब यह राजनीतिक विवाद का विषय बन गया।
निष्कर्ष
माधव सदाशिवराव गोलवलकर ने न केवल आरएसएस को एक विशाल संगठन में परिवर्तित किया, बल्कि हिन्दुत्व की विचारधारा को व्यापक राजनीतिक और सामाजिक विमर्श का विषय बना दिया। यद्यपि उनके विचारों पर गहन विवाद आज भी जारी है, परंतु यह अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि उन्होंने आधुनिक भारत की राजनीतिक संरचना पर गहरा प्रभाव डाला है।
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