गुरु नानक देव जी : सिख के प्रथम गुरु
गुरु नानक देव जी : सिख के प्रथम गुरु
1. बचपन और आध्यात्मिक झुकाव:
गुरु नानक देव जी के बचपन से ही उनके भीतर अलौकिक गुण दिखाई देने लगे थे। कहा जाता है कि जब वे मात्र 5 वर्ष के थे, तभी उन्होंने आध्यात्मिक विषयों में रुचि दिखानी शुरू कर दी। वे अक्सर गहरे चिंतन में लीन रहते थे। उनकी दृष्टि में संसार की माया और बाह्य आडंबरों का कोई महत्व नहीं था। 7 वर्ष की उम्र में उन्हें पाठशाला भेजा गया, लेकिन वे पारंपरिक शिक्षा में रुचि नहीं ले पाए। वे पूछते थे:
“पहले खुद को जानो, फिर जग को समझो।”
उनके पिता ने उन्हें कई बार व्यापार, खेती और पशुपालन जैसे कामों में लगाया, लेकिन नानक जी का मन किसी सांसारिक कार्य में नहीं लगा।
2. विवाह और गृहस्थ जीवन:
गुरु नानक देव जी का विवाह माता सुलक्षणी देवी से हुआ और उनके दो पुत्र हुए— श्रीचंद और लक्ष्मीचंद। यद्यपि वे गृहस्थ जीवन में थे, परंतु उनके मन में सदा ईश्वर की खोज और सेवा का भाव बना रहा। यही कारण है कि उन्होंने गृहस्थ धर्म और ईश्वर भक्ति को एक साथ साधने की मिसाल पेश की।
3. उदासियाँ (यात्राएँ):
गुरु नानक देव जी ने चार प्रमुख यात्राएँ (उदासियाँ) कीं, जो लगभग 25 वर्षों तक चलीं। इन यात्राओं में उन्होंने उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम के देशों की यात्रा की और लोगों को सत्य, प्रेम और करुणा का संदेश दिया।
प्रमुख स्थलों में शामिल हैं:
- पूर्व: बंगाल, असम, ओड़िशा
- पश्चिम: मक्का, मदीना, बगदाद
- उत्तर: तिब्बत, जम्मू-कश्मीर
- दक्षिण: श्रीलंका, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु
इन यात्राओं में वे विभिन्न धार्मिक स्थलों पर गए, संतों, पंडितों, मौलवियों और आम जनता से संवाद किया। उन्होंने हर जगह यह सिखाया कि भगवान न मंदिर में है, न मस्जिद में — वह तो सबके हृदय में है।
4. धार्मिक और सामाजिक सुधारक:
गुरु नानक देव जी केवल आध्यात्मिक गुरु ही नहीं, बल्कि महान समाज सुधारक भी थे। उस समय भारत में निम्नलिखित समस्याएँ प्रमुख थीं:
- जातिप्रथा: ब्राह्मणों का ऊँच जाति में होना और शूद्रों का अपमानित जीवन।
- नारी भेदभाव: स्त्रियों को तुच्छ समझा जाता था।
- धार्मिक पाखंड: ब्राह्मणवाद, तांत्रिक कर्मकांड और बाह्य दिखावा।
- मूल्यविहीन जीवन: नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों का ह्रास।
गुरु नानक जी ने इन सभी बुराइयों के विरुद्ध जन-जागरण किया। उन्होंने कहा:
"सबना जीया का एक दाता सो मैं विसरि न जाई"
अर्थात: "सब जीवों का एक ही दाता है, उसे कभी मत भूलो।"
5. स्त्री का सम्मान:
गुरु नानक देव जी ने स्त्रियों को समाज में सम्मान का स्थान देने की वकालत की। उन्होंने कहा:
"सो क्यों मंदा आखिए, जित जंमहि राजान"
अर्थात: "उसे मंदा क्यों कहें (अवमानित क्यों करें), जिससे राजा जन्म लेते हैं।"
यह विचार उस समय क्रांतिकारी था जब महिलाओं को दोयम दर्जे का समझा जाता था।
6. करतारपुर की स्थापना:
अपने जीवन के अंतिम वर्षों में गुरु नानक देव जी ने करतारपुर (अब पाकिस्तान में) नामक स्थान पर एक commune (सामूहिक जीवन) की स्थापना की। यहाँ उन्होंने नाम-स्मरण, कीर्तन, श्रम और सेवा को जीवन का आधार बनाया। लोग जाति, धर्म, लिंग के भेद के बिना यहाँ एकसाथ रहते, भोजन करते और कार्य करते।
गुरु ग्रंथ साहिब में योगदान:
गुरु नानक देव जी ने अपने उपदेशों को पदों (शब्दों) के रूप में व्यक्त किया, जो संगीतबद्ध किए गए। उनके 974 शब्द गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित हैं। इनमें गूढ़ आध्यात्मिक विचारों के साथ-साथ सहज भाषा में जीवन की सच्चाईयां भी हैं। उन्होंने लोक भाषा (पंजाबी, ब्रज, अवधी आदि) में रचनाएं कीं, जिससे आम जन तक उनके विचार पहुँचे।
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का प्रभाव:
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं न केवल सिख धर्म के लिए आधार बनीं, बल्कि पूरे भारत में सामाजिक और धार्मिक चेतना का नया युग प्रारंभ हुआ। उन्होंने यह दिखाया कि धर्म का वास्तविक उद्देश्य केवल ईश्वर की पूजा नहीं, बल्कि मनुष्य का उत्थान है।
निष्कर्ष:
गुरु नानक देव जी का जीवन एक युग-प्रवर्तक की तरह है। उन्होंने केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और मानवीय क्रांति की नींव रखी। वे सच्चे अर्थों में "जगद्गुरु" थे—पूरे विश्व के गुरु। उनके द्वारा प्रतिपादित नाम जपो, कीरत करो, वंड छको का सिद्धांत आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना 500 वर्ष पहले था।
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