दादासाहेब फाल्के : भारतीय सिनेमा के जनक(30 अप्रैल 1870- 16 फरवरी 1944)
दादासाहेब फाल्के : भारतीय सिनेमा के जनक(30 अप्रैल 1870- 16 फरवरी 1944)
दादासाहेब फाल्के, जिनका असली नाम धुंडिराज गोविंद फाल्के था, का जन्म 30 अप्रैल 1870 को हुआ था। वे भारतीय सिनेमा के जनक के रूप में प्रतिष्ठित हैं। भारतीय फिल्म उद्योग की नींव रखने वाले इस महान व्यक्तित्व की अद्भुत यात्रा, रचनात्मकता, दृढ़ निश्चय और जुनून की प्रेरक गाथा है।
बाल्यकाल और शिक्षा
बाल्यकाल से ही फाल्के जी का रुझान दृश्य कलाओं की ओर था। उन्होंने मुंबई के जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट से पढ़ाई की, जहाँ उन्होंने चित्रकला और फोटोग्राफी में दक्षता प्राप्त की। अपने करियर की शुरुआत उन्होंने फोटोग्राफर, लिथोग्राफर और जादूगर के रूप में की। परंतु वर्ष 1910 में जब उन्होंने मूक फिल्म "द लाइफ ऑफ क्राइस्ट" देखी, तो वे गहराई से प्रभावित हुए। उन्होंने कल्पना की कि यदि भारतीय देवी-देवताओं और पौराणिक कथाओं को फिल्म के माध्यम से जीवंत किया जाए, तो यह कितना प्रभावशाली होगा। यही विचार उनके जीवन की दिशा को बदल गया।
भारत की पहली फीचर फिल्म
अपने इस स्वप्न को साकार करने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत शुरू की। वर्ष 1913 में उन्होंने भारत की पहली पूर्ण लंबाई की फीचर फिल्म "राजा हरिश्चंद्र" का निर्माण और निर्देशन किया। यह मूक फिल्म एक पौराणिक कथा पर आधारित थी और इसी के साथ भारतीय सिनेमा का जन्म हुआ। उस दौर में जब भारत में सिनेमा की कोई पहचान नहीं थी, फाल्के जी ने अकेले ही फिल्म की कहानी लिखी, निर्देशन किया, निर्माण किया, संपादन किया, सेट तैयार किए और यहां तक कि वेशभूषा भी स्वयं डिजाइन की।
"राजा हरिश्चंद्र" को दर्शकों का भरपूर प्रेम मिला और यह एक ऐतिहासिक सफलता साबित हुई। इसके बाद फाल्के ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अगले दो दशकों में उन्होंने 95 फीचर फिल्में और 26 लघु फिल्में बनाईं, जिनमें "मोहिनी भस्मासुर", "लंका दहन" जैसी प्रसिद्ध फिल्में शामिल थीं। उनकी फिल्मों ने न केवल मनोरंजन किया बल्कि भारतीय संस्कृति, परंपराओं और मूल्यों को भी उजागर किया।
हालाँकि समय के साथ उद्योग में परिवर्तन और आर्थिक समस्याओं ने उन्हें प्रभावित किया, फिर भी उनका सिनेमा के प्रति प्रेम कभी कम नहीं हुआ। वे सिनेमा को एक सांस्कृतिक माध्यम मानते थे और मानते थे कि कहानियाँ समाज को दिशा देने में सक्षम होती हैं।
सम्मान
उनके अतुलनीय योगदान के सम्मान में भारत सरकार ने वर्ष 1969 में "दादासाहेब फाल्के पुरस्कार" की स्थापना की। यह पुरस्कार भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान माना जाता है और हर वर्ष उन कलाकारों को दिया जाता है जिन्होंने सिनेमा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान दिया है।
निधन
दादासाहेब फाल्के का निधन 16 फरवरी 1944 को हुआ, लेकिन उनका योगदान अमर है। आज जब भारतीय सिनेमा विश्व के सबसे बड़े फिल्म उद्योगों में गिना जाता है, तो इसका श्रेय उस महान व्यक्ति को जाता है जिसने पहली बार भारत में सिनेमा का बीज बोया था। उनका सपना, उनकी रचनात्मकता और उनका साहस आज भी फिल्मकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
दादासाहेब फाल्के – एक ऐसा नाम, जिसने चलचित्रों को जीवंत किया और भारतीय संस्कृति को पर्दे पर उतार दिया।
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