नामवर सिंह: हिंदी आलोचना के शिखर पुरुष (28 जुलाई 1926 – 19 फरवरी 2019)

नामवर सिंह: हिंदी आलोचना के शिखर पुरुष (28 जुलाई 1926 – 19 फरवरी 2019)

नामवर सिंह हिंदी साहित्य के एक ऐसे आलोचक, भाषाविद्, शिक्षाविद और सिद्धांतकार थे, जिन्होंने छह दशकों से अधिक समय तक हिंदी आलोचना के परिदृश्य को अपने विचारों और लेखन से समृद्ध किया। उन्हें हिंदी आलोचना का 'शिखर पुरुष' माना जाता है, जिन्होंने न केवल आलोचना को एक नई दिशा दी बल्कि साहित्यिक कृतियों के मूल्यांकन के नए मानदंड भी स्थापित किए। उनकी विद्वता, तार्किकता और निर्भीक राय ने उन्हें लेखकों और पाठकों के बीच समान रूप से लोकप्रिय बनाया।

जीवन परिचय:

नामवर सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के जीयनपुर गाँव में एक साधारण परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई। उच्च शिक्षा के लिए वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) गए, जहाँ से उन्होंने हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। बीएचयू में उन्होंने कुछ समय तक अध्यापन भी किया। इसके बाद उन्होंने सागर विश्वविद्यालय और फिर जोधपुर विश्वविद्यालय में हिंदी साहित्य के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में हिंदी विभाग की स्थापना में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। उन्होंने न केवल पाठ्यक्रम तैयार किया बल्कि अध्यापन का एक नया प्रतिमान भी स्थापित किया। वे जेएनयू के भारतीय भाषा केंद्र के संस्थापक और पहले अध्यक्ष थे। 1992 में वे जेएनयू से सेवानिवृत्त हुए और उसके बाद भी एमेरिटस प्रोफेसर के रूप में केंद्र से जुड़े रहे।

शैक्षणिक जीवन के साथ-साथ नामवर सिंह ने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी सक्रिय योगदान दिया। उन्होंने साप्ताहिक समाचार पत्रिका 'जनयुग' और साहित्यिक आलोचना की प्रतिष्ठित पत्रिका 'आलोचना' का संपादन किया। अपनी सेवानिवृत्ति के बाद, उन्हें महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा का कुलाधिपति नियुक्त किया गया।

साहित्यिक योगदान:

नामवर सिंह मुख्य रूप से कविता के आलोचक माने जाते थे, लेकिन उन्होंने कहानी, उपन्यास और अन्य साहित्यिक विधाओं पर भी महत्वपूर्ण आलोचनात्मक लेखन किया। उनकी आलोचना में मार्क्सवादी विचारधारा का गहरा प्रभाव दिखाई देता है, लेकिन वे किसी भी वाद या विचारधारा के बंधक नहीं थे। उन्होंने साहित्य को समाज, इतिहास और संस्कृति के संदर्भ में देखने और उसका मूल्यांकन करने पर जोर दिया।
उनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं:

 * कविता के नए प्रतिमान (1968): यह पुस्तक आधुनिक हिंदी कविता के मूल्यांकन के नए मानदंडों को स्थापित करती है और काव्य भाषा के दुरुपयोग की आलोचना करती है।

 * छायावाद (1955): यह छायावादी काव्य आंदोलन का विस्तृत और गहन विश्लेषण प्रस्तुत करती है, जिसमें प्रसाद, निराला, महादेवी और पंत जैसे प्रमुख कवियों की रचनाओं पर विचार किया गया है।

 * इतिहास और आलोचना (1957): इस पुस्तक में शीत युद्ध के दौर के साहित्यिक परिदृश्य और विभिन्न साहित्यिक कृतियों का आलोचनात्मक मूल्यांकन किया गया है।

 * दूसरी परंपरा की खोज (1982): यह कृति भारतीय साहित्यिक परंपरा की विविधता और उसमें मौजूद लोक तत्वों की महत्ता पर प्रकाश डालती है। इसमें कबीर की तुलना में कालिदास और सूरदास के महत्व को प्रतिपादित किया गया है।

 * वाद विवाद संवाद (1999): यह पुस्तक नामवर सिंह के विभिन्न साक्षात्कारों और संवादों का संग्रह है, जिसमें उनके साहित्यिक और सामाजिक विचारों को गहराई से समझा जा सकता है।

 * कहानी नई कहानी (1965): यह आधुनिक हिंदी कहानी के विकास और उसकी प्रमुख प्रवृत्तियों का विश्लेषण करती है।
इनके अतिरिक्त, उन्होंने 'पृथ्वीराज रासो की भाषा', 'आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियाँ', 'प्रेमचंद और भारतीय समाज' जैसी अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकों का लेखन और संपादन किया।

आलोचनात्मक दृष्टि:

नामवर सिंह की आलोचनात्मक दृष्टि अत्यंत व्यापक और गहरी थी। वे साहित्यिक कृतियों का विश्लेषण करते समय न केवल उनकी आंतरिक संरचना पर ध्यान देते थे, बल्कि उनके सामाजिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भों को भी महत्व देते थे। उनकी आलोचना में तुलनात्मक अध्ययन और अंतर्विषयक दृष्टिकोण प्रमुख रूप से दिखाई देता है। वे साहित्य को समाज परिवर्तन का एक सशक्त माध्यम मानते थे और प्रगतिशील मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध थे।

उनकी आलोचना की कुछ प्रमुख विशेषताएं:

 * पाठक को पढ़ना सिखाना: नामवर सिंह का मानना था कि आलोचना का प्राथमिक कार्य पाठक को यह सिखाना है कि किसी रचना को कैसे पढ़ा जाए।

 * समग्रतावादी दृष्टिकोण: वे साहित्य को इतिहास, समाज, राजनीति और संस्कृति से अलग करके नहीं देखते थे।

 * भाषा और शैली की सजगता: उनकी आलोचना में भाषा और शैली पर विशेष ध्यान दिया जाता था। वे स्वयं एक लालित्यपूर्ण और सर्जनात्मक भाषा का प्रयोग करते थे।

 * निडर और स्पष्ट राय: वे अपनी राय स्पष्ट रूप से व्यक्त करने में कभी नहीं हिचकिचाते थे, भले ही वह स्थापित मान्यताओं के विपरीत ही क्यों न हो।

 * युवा लेखकों को प्रोत्साहन: उन्होंने हमेशा युवा और प्रतिभाशाली लेखकों को प्रोत्साहित किया और उन्हें मंच प्रदान किया।

विरासत:

नामवर सिंह का निधन 92 वर्ष की आयु में हुआ, लेकिन उनका साहित्यिक योगदान आज भी हिंदी साहित्य जगत को प्रेरित कर रहा है। उन्होंने हिंदी आलोचना को एक नई ऊँचाई प्रदान की और उसे अकादमिक जगत के साथ-साथ आम पाठकों के बीच भी लोकप्रिय बनाया। उनकी कृतियाँ आज भी शोधार्थियों, छात्रों और साहित्य प्रेमियों के लिए महत्वपूर्ण संदर्भ सामग्री हैं। उन्हें हमेशा एक ऐसे आलोचक के रूप में याद किया जाएगा जिन्होंने साहित्य को समाज और मनुष्य के जीवन से गहराई से जोड़ा और आलोचना को एक जीवंत और प्रासंगिक विधा बनाए रखा।

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