मन्ना डे: स्वर साधना के शिखर पुरुष(1 मई, 1919 - 24 अक्टूबर, 2013)
मन्ना डे: स्वर साधना के शिखर पुरुष(1 मई, 1919 - 24 अक्टूबर, 2013)
परिचय:
भारतीय सिनेमा के स्वर्णिम युग में, जब मधुर धुनों और भावपूर्ण आवाजों का जादू छाया हुआ था, मन्ना डे एक ऐसे नक्षत्र की तरह चमके, जिनकी गायकी ने संगीत प्रेमियों के दिलों पर अमिट छाप छोड़ी। प्रबोध चंद्र डे, जिन्हें दुनिया मन्ना डे के नाम से जानती है, एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी गायक थे। उनकी शास्त्रीय संगीत की गहरी समझ और हर शैली में सहजता से उतर जाने की क्षमता ने उन्हें फिल्म संगीत के इतिहास में एक अद्वितीय स्थान दिलाया। मन्ना डे ने अपनी आवाज से न केवल गीतों को जिया, बल्कि उन्हें अमरत्व भी प्रदान किया।
जन्म और प्रारंभिक जीवन:
1 मई, 1919 को कोलकाता (तत्कालीन ब्रिटिश भारत) में जन्मे मन्ना डे का बचपन संगीत के सुरों से घिरा रहा। उनके पिता, पूर्णचंद्र डे, ने उनके भीतर संगीत के प्रति स्वाभाविक रुझान को पहचाना। उनके चाचा, कृष्णचंद्र डे (के.सी. डे), जो स्वयं एक प्रतिष्ठित शास्त्रीय गायक और संगीतकार थे, मन्ना डे के पहले गुरु बने। चाचा के कठोर अनुशासन और संगीत के प्रति समर्पण ने युवा मन्ना के जीवन की दिशा तय कर दी। उन्होंने न केवल अपने चाचा से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की, बल्कि उस्ताद अमन अली खान और उस्ताद अब्दुल रहमान खान जैसे दिग्गज संगीतज्ञों से भी शास्त्रीय संगीत की बारीकियां सीखीं। यह गहन प्रशिक्षण उनकी गायकी में आजीवन झलकता रहा।
संगीत करियर की शुरुआत:
मन्ना डे के पार्श्वगायन के सफर की शुरुआत 1942 में फिल्म "तमन्ना" से हुई। इस फिल्म में उनका गाया हुआ पहला गीत "जय जगदीश्वर भगवान" था, जो भक्ति रस से ओतप्रोत था। यह गीत उनकी शास्त्रीय संगीत की नींव को दर्शाता था। इसके बाद उन्होंने विभिन्न भारतीय भाषाओं - हिंदी, बांग्ला, मराठी, गुजराती, कन्नड़, मलयालम आदि में लगभग 4000 से अधिक गीतों को अपनी आवाज दी। उनकी गायकी की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे जटिल रागों को भी अत्यंत सहजता और स्पष्टता के साथ प्रस्तुत कर सकते थे। चाहे शास्त्रीय बंदिशें हों, भक्ति भजन हों, प्रेम रस से सराबोर रोमांटिक गाने हों, हास्य से भरपूर चंचल गीत हों, देशभक्ति की भावना जगाने वाले तराने हों, कव्वालियों की मस्ती हो या ग़ज़लों की गहराई - हर शैली में मन्ना डे ने अपनी अद्वितीय पहचान बनाई।
प्रसिद्ध गीत:
मन्ना डे के गाए हुए अनगिनत गीत आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों में जीवित हैं। उनकी आवाज में वह जादू था जो हर पीढ़ी को मंत्रमुग्ध कर देता है। कुछ ऐसे अमर गीत, जिन्होंने उन्हें भारतीय संगीत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से लिख दिया, इस प्रकार हैं:
* "लागा चुनरी में दाग" (फिल्म: दिल ही तो है) - राग भैरवी पर आधारित यह गीत उनकी शास्त्रीय गायकी का उत्कृष्ट उदाहरण है।
* "ऐ मेरे प्यारे वतन" (फिल्म: कबुलीवाला) - यह देशभक्ति गीत आज भी हर भारतीय के हृदय में देशप्रेम की भावना जगाता है।
* "जिंदगी कैसी है पहेली" (फिल्म: आनंद) - जीवन के दर्शन को सरल शब्दों में पिरोता यह गीत अपनी गहराई और मन्ना डे की भावपूर्ण आवाज के लिए जाना जाता है।
* "पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई" (फिल्म: मेरी सूरत तेरी आँखें) - राग अहीर भैरव पर आधारित यह विरह गीत उनकी शास्त्रीय पकड़ और भावनात्मक अभिव्यक्ति का अद्भुत संगम है।
* "यह दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे" (फिल्म: शोले) - दोस्ती के अटूट बंधन को दर्शाता यह गीत आज भी मित्रता का प्रतीक है।
* "न तुम हमें जानो न हम तुम्हें जानें" (फिल्म: बात एक रात की) - यह रहस्यमयी और रोमांटिक गीत अपनी मधुर धुन और मन्ना डे की कोमल आवाज के लिए प्रसिद्ध है।
विशेषताएँ:
मन्ना डे की गायकी में कई ऐसी विशिष्टताएं थीं जिन्होंने उन्हें अपने समकालीन गायकों से अलग पहचान दिलाई:
* शास्त्रीय संगीत में महारत: वे उन चुनिंदा पार्श्वगायकों में से थे जिन्होंने शास्त्रीय संगीत की जटिलताओं को फिल्मी गीतों में भी पूरी ईमानदारी और कुशलता से निभाया। उनकी आवाज में रागों की शुद्धता और लय का अद्भुत ज्ञान झलकता था।
* भाव-प्रवण गायकी: उनकी आवाज में एक गजब की गहराई और भावनाओं की सजीवता थी। वे गीत के भावों को अपनी आवाज के माध्यम से श्रोताओं के हृदय तक सीधे पहुंचाते थे, जिससे सुनने वाला गीत के साथ पूरी तरह से जुड़ जाता था।
* विविधता: मन्ना डे ने अपनी गायकी में अद्भुत विविधता दिखाई। उन्होंने हास्य गीतों को भी उतनी ही सहजता से गाया जितना गंभीर भक्ति गीतों को। उनकी आवाज हर रस और भाव को व्यक्त करने में सक्षम थी।
* अनुशासन और सादगी: मन्ना डे का व्यक्तिगत जीवन अत्यंत अनुशासित और विनम्र था। उनकी यह सादगी और समर्पण उनके संगीत में भी परिलक्षित होता था। उन्होंने कभी भी लोकप्रियता के लिए अपनी कला से समझौता नहीं किया।
सम्मान और पुरस्कार:
मन्ना डे को भारतीय संगीत में उनके अद्वितीय योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजा गया:
* पद्म श्री (1971)
* पद्म भूषण (2005)
* दादा साहेब फाल्के पुरस्कार (2007)
* राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (2 बार)
* कई बार फिल्मफेयर पुरस्कार में नामांकन और विशेष पुरस्कार
ये पुरस्कार उनकी कला के प्रति सम्मान और उनके योगदान की महत्ता को दर्शाते हैं।
निजी जीवन और अंतिम समय:
मन्ना डे ने अपने संगीत करियर के साथ-साथ निजी जीवन को भी गरिमा और शालीनता से जिया। 1953 में उन्होंने सुलोचना कुमारन से विवाह किया और उनके दो बच्चे हुए। वे संगीत से जुड़े कार्यक्रमों और मंचों पर सक्रिय रूप से भाग लेते रहे और अपनी कला से लोगों को प्रेरित करते रहे। 24 अक्टूबर, 2013 को बैंगलोर में उनका निधन हो गया। उनका जाना भारतीय संगीत जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति थी, एक ऐसे युग का अंत था जिसने अपनी मधुर आवाज से करोड़ों दिलों पर राज किया।
उपसंहार:
मन्ना डे केवल एक गायक नहीं थे, वे भारतीय संगीत संस्कृति के एक जीवंत प्रतीक थे। उनका संगीत कालजयी है, जो आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरित करता रहेगा। उनकी आवाज में जो मिठास, विद्वत्ता और आत्मा का स्पर्श है, वह दुर्लभ है। वे सचमुच "गायन शिरोमणि" कहलाने के योग्य हैं। मन्ना डे भारतीय संगीत के एक ऐसे युगपुरुष थे, जिनकी आवाज हमेशा हमारे दिलों में गूंजती रहेगी। उन्होंने यह साबित कर दिया कि शास्त्रीय संगीत की नींव पर भी लोकप्रिय और अमर गीत रचे जा सकते हैं। उनकी विरासत आज भी युवा गायकों और संगीत प्रेमियों के लिए एक प्रेरणास्रोत है।
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