श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 2
सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता द्वितीय अध्याय अध्याय 2: सांख्ययोग शाश्वत आत्मा और शरीर की अनित्यता के बारे में ज्ञान का बोध.. संजय उवाच तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् । विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदन:ll भावार्थ : संजय बोले- उस प्रकार करुणा से व्याप्त और आँसुओं से पूर्ण तथा व्याकुल नेत्रों वाले शोकयुक्त उस अर्जुन के प्रति भगवान मधुसूदन ने यह वचन कहा॥1॥ मैथिली भावार्थ:-संजय बजलाह - तहिना भगवान मधुसूदन ओहि शोकग्रस्त अर्जुन केँ ई बात कहलनि, जे करुणा सँ भरल, नोर सँ भरल आ परेशान आँखि सँ भरल छलाह।1॥ श्रीभगवानुवाच कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् । अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन॥2.2॥ भावार्थ : श्रीभगवान बोले- हे अर्जुन! तुझे इस असमय में यह मोह किस हेतु से प्राप्त हुआ? क्योंकि न तो यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग को देने वाला है और न कीर्ति को करने वाला ही है॥2॥ मैथिली भावार्थ:-भगवान श्री कहलखिन- हे अर्जुन! एहि असामयिक समय मे अहाँ केँ ई लगाव किएक भेटल? कारण ई ने महापुरुष द्वारा अभ्यास कयल जाइत अछि, ने स्वर्ग केँ देबऽ बला अछि, ने यश लेबय बला अछि।॥२॥ ...